एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार ने प्राइम टाइम में टीकाकरण की रफ्तार पर सवाल उठाते हुए इसकी तुलना पोलियो अभियान से की थी। जिसके बाद लगातार लोग सवाल करने लगे, इसपर जवाबी पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा-

“पल्स पोलियो से तुलना करने वाले पल्स पोलियो से तुलना करने पर नाराज़ क्यों?

मई के महीने में ऐसे कई पेज पर पोलियो अभियान को लेकर बातें शुरू होती हैं। ऐसे पेज और पोस्ट करने वालों को आप मोदी समर्थक में रख सकते हैं। वे ख़ुद को योगी समर्थक भी कहते हैं। इन सबके पेज से यह बात उठी थी कि पोलियो की दो बूँद पिलाने में पचीस साल से ज़्यादा लग गए और वो कहते हैं कि छह महीने में सबको वैक्सीन लग जाए।

उसके बाद बीजेपी सांसद सुशील मोदी पोलियो अभियान से तुलना करते हुए बयान देते हैं और अपने छपे हुए बयान को ट्वीट भी करते हैं।

फिर प्रधानमंत्री भी राष्ट्र के नाम संबोधन में पोलियो अभियान का ज़िक्र करते हैं लेकिन इस तरह से नहीं जैसे सोशल मीडिया में पोलियो अभियान को लेकर कहा जा रहा था। मगर संदर्भ वही था।

तुलना करने वाले कौन लोग थे। जो कर रहे थे उन्हें पता नहीं था कि भारत का पोलियो अभियान दुनिया भर में अनुकरणीय माना जाता है। इस अभियान में घर-घर जाकर बच्चों को दो बूँद पिलाने से पहले एक एक आदमी को समझाना पड़ा था।

भरोसे में लेना पड़ा था। इसके लिए लाखों लोग हज़ारों दिनों तक पैदल चले थे। हर डेटा को चेक किया जाता था। गली गली घूम कर पता किया जाता था कि कहीं कोई छूटा तो नहीं है।

वह ऐसा अभियान था जिसे 90 प्रतिशत पर सफल नहीं माना जाता था। जब तक 100 फ़ीसदी कवरेज नहीं होता था पोलियो के अभियान को असफल माना जाता था।

बाद में ऐसे कई साल आए जब एक पोलियो की दो बूँदें 17 करोड़ बच्चों को पिलाई गईं। इसका मतलब यह नहीं कि पोलियो का अभियान साल भर नहीं चलता था।

अब जब मैंने लिख दिया कि पोलियो अभियान को कमतर बताने वाले लोग इसके एक हिस्से को भी नहीं छू सके। छह महीने का टीकाकरण अभियान 86 लाख ही पहुँच सका जबकि पोलियो का रिकार्ड 17 करोड़ तक का है।

2012 के साल से कमोबेश इसी संख्या में बच्चों को पोलियो की दो बूँदें दी जाती हैं। तो कह रहे हैं कि मैंने पोलियो से तुलना की जो की ही नहीं जा सकती।

भाई तुलना आप कर रहे थे। मैंने तो बस ये बता दिया कि जिस पोलियो अभियान को नकारा बता रहे हैं उसके अभियान पर आपने प्रधानमंत्री की तस्वीर नहीं देखी थी लेकिन वो हर घर पहुँचा था।

भारत में पैदा होने वाले हर बच्चे के घर पहुँचा था तब जाकर भारत से पोलियो ख़त्म हुआ था। इतना ज़ोर लगाकर एक दिन के इस ईवेंट मैनेजमेंट का नतीजा बेहद साधारण निकला है। यह मान लेने में किसी की हार नहीं है।

यक़ीन न हो तो इस तरह के मीम को आप देख सकते हैं। सुशील मोदी के ट्वीटर हैंडल पर जाकर देख सकते हैं।

हाँ उन्हें पता नहीं कि मेरे कारण उन्होंने अब पोलियो अभियान का रिकार्ड बताना शुरू कर दिया है!

वही तो सवाल है कि जो देश हर साल 17 करोड़ बच्चों को टीका देता है वो छह महीनें में इतना दम लगाकर भी 86 लाख ही क्यों दे सका। क्या टीका नहीं है?”

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