असम के नवनिर्वाचित विधायक और रायजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई को एनआईए कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए आंदोलनों में हिस्सा लेने के मामले में बाइज्जत बरी कर दिया है।

मालूम हो कि वर्ष 2019 के दिसंबर में सीएए जैसे नागरिकता कानूनों के खिलाफ असम में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे।

इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई जगहों पर हिंसा भड़क उठी थी। इन हिंसक वारदातों के लिए आंदोलनकारी अखिल गोगाई को जिम्मेवार ठहराते हुए हिरासत में ले लिया गया था।

बड़ा सवाल उठता है कि अपने मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले एक एक्टिविस्ट को शांति भंग करने के झूठे आरोपों में हिरासत में ले लिया जाता है।

दिसंबर 2019 से जून 2021 तक का लंबा वक्त अखिल गोगोई का पुलिस हिरासत में बीत गया। कुल 18 महीने का वक्त अखिल ने सलाखों के अंदर व्यतीत किया। इसकी भरपाई कौन करेगा?

कोर्ट ने तो अखिल गोगोई को बरी कर दिया लेकिन उसके ये कीमती 18 महीने या डेढ़ साल कहां से वापस आ पाएंगे !

वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया एक्सपर्ट प्रशांत टंडन ने अखिल गोेगोई मामले पर ट्वीट करते हुए कहा है कि “बिना किसी ठोस सबूत के यूएपीए लगाने वाले जब तक जेल के अंदर नहीं भेजे जाएंगे और बर्खास्त नहीं किए जाएंगे।

तब तक इन कानूनों का दुरुपयोग होता रहेगा और अखिल गोगोई जैसे कार्यकर्ता जुल्म का शिकार होते रहेंगे”

प्रशांत टंडन ने गुजरात का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक समय में गुजरात में लगातार फर्जी इनकाउंटर्स होते रहते थे। जैसे ही बंजारा और अमीन जैसे लोग जेल गए, अचानक से ही फर्जी इनकाउंटर्स बंद हो गए।

वैसे ही जहां भी पुलिस अधिकारी किसी को फर्जी आरोपों के आधार पर यूएपीए में फंसा रहे हो, उन्हें या तो जेल भेज दिया जाए या बर्खास्त कर दिया जाए।

बताते चलें कि भले ही पुलिस ने अखिल गोगोई को जेल के अंदर डाल दिया हो लेकिन इसी दौर में वो जनता के नायक के रुप में उभर गए। आंदोलन के दौरान ही उन्होंने रायजोर दल का गठन किया।

थोड़े ही दिनों पूर्व संपन्न हुए असम विधानसभा चुनावों में उन्होंने शिबसागर विधानसभा क्षेत्र से अपनी किस्मत आजमाई. हिरासत में रहने के बावजूद अखिल शानदार तरीके से चुनाव जीत गए।

जांच एजेंसियांे ने अखिल के खिलाफ दो केस लगाए थे।पहला केस था डिब्रुगढ़ के छाबुआ पुलिस स्टेशन के बाहर प्रदर्शन और दूसरा था गुवाहाटी के चांांदमारी इलाके में आंदोलन का।

अखिल पर आईपीसी की कई धाराओं के साथ यूएपीए के तहत भी केस दर्ज किया था। छाबुआ केस में एनआईए कोर्ट ने अखिल को क्लीनचिट देते हुए बरी कर दिया।

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