प्रधानमंत्री बार बार अनुरोध कर रहे हैं कि उद्योग अपने यहाँ काम करने वालों को न निकालें। मुझे कुछ लोगों ने तो कहा कि कुछ कंपनियों ने पाँच सौ हज़ार को निकाल दिया है लेकिन क्या यह व्यापक स्तर पर हो रहा है?
होता तो बहुत से लोग लिख रहे होते। अगर नौकरी जाने के बाद भी नहीं लिख रहे तो यह मध्यमवर्ग और नौकरीपेशा लोगों के राष्ट्रीय चरित्र का लक्षण हैं। वे शिकायत नहीं कर रहे। बल्कि स्वीकार कर रहे हैं। इसकी तारीफ़ तो करनी पड़ेगी।
नौकरी और सैलरी गँवा कर अगर मध्यमवर्ग देश के साथ एकजुट है तो यह बहुत बड़ी बात है। यह एक नए भारत का उदय है। लोग सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं। वरना नौकरी में कई लोग स्वार्थी हो जाते हैं।
मीडिया में भी इसकी कम रिपोर्टिंग है। आम तौर पर नौकरी जाने के सवाल को लेकर हाहाकार मचा रहता है। वैसे मीडिया के भीतर कई लोगों की नौकरी जाने की खबरें आईं हैं। दुखद है। उम्मीद है कि नौकरी जाने की ख़बरें अपवाद हों। क्या आपका आपके परिचित की तालाबंदी के दौर में नौकरी गई है? पूरी जानकारी के साथ सूचना दें।
मुझे पता था कि हमारे उद्योगपति देश के साथ रहते हैं। किसी को नौकरी से नहीं निकालते हैं। और अपने प्रिय प्रधानमंत्री की बात नहीं टालते। इसके लिए उनकी भी तारीफ़ ज़रूरी है। उम्मीद है कि मेरी बात सच हो !