आपकी जान की क़ीमत दो कौड़ी की नहीं रही। पेट्रोल सौ के पार हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाक़ई भारत को विश्व गुरु बना दिया है।

डरे हुए लोग अपनी जान गँवा बैठे मगर बोल नहीं पाए। जान गँवा नहीं बैठे बल्कि तड़पा-तड़पा कर मारे गए हैं। हर चीज़ को डेटा में बदलने के इस दौर में आपके आपनों की लाश डेटा नहीं है। बहती लाशों को देख कर भी चुप्पी है।

आप अपनों के प्रति भी बेईमान निकले। अब किसी की आस्था आहत नहीं हो रही है। ये सारी लाशें आस्था से बाहर कर दी गई हैं। आस्था की राजनीति से बाहर कर दी गई हैं।

अब इन लाशों को नदी से निकाल कर शहर के बीच में नहीं लाया जा रहा है। लाशों की राजनीति करने वाले लाशों को राजनीति से बेदख़ल कर रहे हैं।

सरकारी आँकड़ों से बाहर फेंक दे रहे हैं। श्मशान में आँकड़े मिल रहे हैं। सरकार नहीं दे रही है। सरकार के आँकड़े में कम मर रहे हैं, आपकों घरों, परिवार, रिश्तेदारों और पड़ोस में ज़्यादा मर रहे हैं।

जो चुप हैं वो भी एक लाश हैं जिनकी कोई गिनती नहीं है। आज आप बर्बादी के बीच खड़े हैं। कगार पर नहीं। लेकिन उसका झूठ बोलना जारी है। उसका चुप रहना भी झूठ बोलना ही है। आप भी अलग नहीं है। इसी झूठ ने सबको पहले ही मार दिया। मरे हुए लोग कैसे बोल सकते हैं।

व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी और प्रोपेगैंडा की चपेट में आप सात साल से भजन कर रहे थे। कीजिए। गाइये भजन उनकी भक्ति के। अपने घर की लाशों को आप भी सरकार की तरह छिपा लीजिए। गंगा में बहा दीजिए। कहिए न।

कुछ तो कहिए। कुछ नहीं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ ही कीजिए। पुलिस केस भी नहीं करेगी।

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