Samar Raj

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘गुजरात मॉडल’ की सच्चाई अब सबके सामने आ चुकी है। सरकारी सर्वे एनएफएचएस (NFHS) के अनुसार गुजरात के गांवों के मात्र 45 प्रतिशत लड़के और 29.2 प्रतिशत लड़कियां 16 से 17 आयु तक सेकंडरी लेवल की पढ़ाई पूरी कर पाते हैं। बाकी सब बच्चें अलग-अलग कारणों से बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं।

इसका मतलब प्रधानमंत्री मोदी जिस ‘गुजरात’ का सपना पूरे देश को दिखाते थे, वहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल से ड्रॉपआउट करते हैं।

‘न्यूज़क्लिक’ की खबर के अनुसार, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) ने अपना डाटा जारी कर बताया है कि देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले गुजरात में सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे सेकंडरी लेवल तक स्कूल छोड़ देते हैं।

गुजरात में 96.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के लड़के प्राइमरी लेवल पर स्कूल में भर्ती होते हैं। लेकिन इसमें से केवल 45 प्रतिशत ही हायर सेकेंडरी लेवल तक पहुंच पाते हैं।

लगभग 97.3 प्रतिशत महिलाएं प्राइमरी लेवल पर स्कूल में भर्ती होती हैं हालांकि मात्र 29.2 प्रतिशत ही हायर सेकेंडरी लेवल तक पहुंच पाती हैं।

शिक्षा से वंचित रहे इन बच्चों को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। मोदी सरकार का ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ नारा भी साफ तौर पर फेल होता दिख रहा है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले कई दशकों से गुजरात में भाजपा की सरकार है। इसमें से 10 साल से ज़्यादा तो नरेंद्र मोदी ही मुख्यमंत्री रहे हैं।

भाजपा केरल को वामपंथी राज्य कहकर बदनाम करती रही है। लेकिन इसी राज्य में ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा सबसे बेहतर है। यहां पर करीब 90.8 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र के लड़के हायर सेकेंडरी लेवल तक अपनी शिक्षा पूरी करते हैं।

इस राज्य में 93.6 लड़कियां इस लेवल तक शिक्षा पूरी कर कर लड़कों से भी आगे हैं।

देश में ‘केरल और गुजरात मॉडल’ को लेकर अक्सर बहस छिड़ी रहती है। विकास के मामले में केवल गुजरात ही नहीं, केरल दूसरे सभी राज्यों से कई मानकों पर बेहतर प्रदर्शन देता आया है।

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