Samar Raj

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2019 के दिन देश को ‘ओपन डेफीकेशन फ्री’ घोषित कर दिया था। उनका दावा था कि देश के हर गांव, हर शहर में शौचालय है। लेकिन अब खुद सरकारी डाटा ही प्रधानमंत्री के दावों की पोल खोल रहा है।

नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) ने 18 राज्यों के ग्रामीण इलाकों का सर्वे किया और पाया कि उनमें ऐसे बहुत से घर हैं जिसमें शौचालय की व्यवस्था नहीं है।

इसी के साथ-साथ शौचालय की सुविधा मिलने में जातिगत भेदभाव होता है।

‘द हिंदू’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्वे में पाया गया कि बिहार में मात्र 61.7% घरों को किसी भी प्रकार के शौचालय उपलब्ध है। मिज़ोरम के लिए ये आंकड़ा 99.9% है, लेकिन प्रधानमंत्री के दावों के मुताबिक ये भी 100% नहीं है।

एनएफएचएस-5 ने इस सर्वे को वर्ष 2019 के मध्य में शुरू किया था, और मार्च 2021 तक पूरा किया।

ध्यान देने वाली बात ये है कि दूसरे घरों के मुकाबले जिन घरों में अनुसूचित जाति और जनजाति से आने वाले लोग रहते हैं, वहां शौचालय की पहुंच बहुत कम है।

इससे साफ पता चलता है कि ज़मीनी सच्चाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावों से बहुत अलग है। देश के ग्रामीण इलाकों में हर परिवार के इस्तेमाल के लिए शौचालय उपलब्ध नहीं है, और ऊपर से इसमें भी जातिगत भेदभाव होता है।

सर्वे के अनुसार पूरा देश तो छोड़िए, इन 18 राज्यों में से एक के भी ग्रामीण इलाके 100% ‘ओपन डिफेकेशन’ मुक्त नहीं है।

शौचालय और जातिगत भेद-भाव

‘द हिंदू’ की ख़बर के मुताबिक, बिहार में मात्र 45.8% अनुसूचित जाति और 46.6% अनुसूचित जनजाति वाले घरों के पास किसी भी प्रकार का शौचालय उपलब्ध है।

वहीं दूसरी तरफ़ इस राज्य में 81.6% गैर-ओबीसी, गैर-अनुसूचित जाति और जनजाति वाले घरों के पास टॉयलेट फैसिलिटी है।

ठीक ऐसा ही हाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना का भी है।

भाजपा के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के वादों और प्रधानमंत्री के ‘ओपन डिफेकेशन फ्री’ दावों के झूठ का पर्दाफाश करती है ये रिपोर्ट।

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