हाल ही में दिल्ली हिंसा मामले में गिरफ्तार किए गए पिंजरा तोड़ संस्था की एक्टिविस्ट देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र आसिफ इकबाल को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा जमानत दे दी गई है।

यह तीनों कार्यकर्ता बीते एक साल से जेल में बंद थे। इन पर आरोप था कि फरवरी 2020 में पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा को भड़काने में इनकी अहम भूमिका रही थी।

जेल से रिहा होने के बाद इन तीनों ने ‘द वायर’ की सीनियर एडिटर आरफा खानम शेरवानी के साथ बातचीत की है। इस दौरान इन तीनों ने कई मुद्दों पर चर्चा करते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त की।

देवांगना कलिता ने बातचीत के दौरान बताया कि जब भी आपको डेमोक्रेसी और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने हो तो यह सब आपको बर्दाश्त करना ही पड़ेगा।

हमारे दिमाग में यह बात एक बार भी नहीं आई कि हमने ऐसा क्यों किया। हम इस आंदोलन का हिस्सा ना बनते।

ऐसा इसलिए क्यूंकि हमने उस आंदोलन में देखा कि किस तरह से लाखों की तादाद में मुस्लिम औरतों और बच्चों ने अपनी पहचान को बचाने के लिए दिन रात बैठकर आंदोलन किया। उनमें क्या जज्बा था।

उस आंदोलन का हिस्सा बनना मेरे लिए गर्व की बात है। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। जिस तरह से हमें उनसे हिम्मत मिली है। उसके चलते ही एक साल हम जेल में गुजार पाए हैं।

वहीँ नताशा नरवाल ने इस मामले में बातचीत करते हुए बताया कि हमारे देश की जेलों में सबसे ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग बंद होते हैं।

जेल में भी हमें बहुत सारी मुस्लिम औरतें मिली। जिन्होंने आंदोलन में भाग लिया था।

जहां जेल में बंद हमारे कई दिन मुश्किलों में गुजरे। वही हमें ज्यादातर हिम्मत और साहस मिलता रहा। जेल में बंद मुस्लिम औरतें हमें आकर हमेशा हौसला देती थी।

वो मुस्लिम महिलाएं कहती थी कि हम लोगों ने जो भी किया है, वो सही किया है। हमें कभी भी हिम्मत नहीं हारना चाहिए।

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