दिल्ली में कोरोना के बहाने करीब 16 लाख बच्चों को उनके हक़ का ‘मिड डे मील’ नहीं दिया जा रहा है। केंद्र और राज्य सारकार के बीच की तना-तनी के कारण वंचित तबके के बच्चों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उच्च न्यायालय ने इस अनियमितता पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि उन्हें 3 हफ़्तों के अंदर सभी बच्चों को मिड-डे मील या फिर फूड सिक्योरिटी अलॉउन्स (भत्ता) देना होगा।
दरअसल, महिला एकता मंच और सोसायटी फॉर एनवायरनमेंट एंड रेगुलेशन ने दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में सरकारी और सरकार द्वारा फंडेड स्कूल के बच्चों को न मिल रहे मिड-डे-मील पर सवाल खड़े किए गए है।
राजधानी में बीते 3 महीने से करीब 16 लाख बच्चों को मिड-डे-मील योजना के लाभ से वंचित रखा जा रहा है। केजरीवाल सरकार के वकील की दलील है कि केंद्र सरकार को राज्य को 69 करोड़ का भुगतान करना हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं। केंद्र सरकार की तरफ़ से केस लड़ रहे वकील का कहना है कि दिल्ली सरकार को 27 करोड़ रुपए समेत राशन दिया जा चुका है।
इस योजना के तहत केंद्र सरकार की मदद से देश के सरकारी और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त स्कूलों और मदरसे में मिड-डे-मील दिया जाता है। इस अभियान को 1995 में लॉन्च किया गया था और अब ये ‘नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट, 2013’ के अंतर्गत आता है।
वर्कर्स यूनिटी की एक ख़बर के मुताबिक, महिला एकता मंच का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने कोर्ट को बताया है कि वो 16 लाख बच्चों को दिए जाने वाले 1.34 लाख कुंतल चावल के लिए करीब 3.3 करोड़ रुपए का भुगतान करेगी। जबकि इसकी मार्केट में कीमत 40 करोड़ रुपए है। इसका मतलब इस मामले में 36.7 करोड़ की अनियमितता है।
मार्च महीने में केजरीवाल ने कहा था कि राज्य सरकार बच्चों को मिड-डे-मील के तहत दरवाज़े तक खाना पहुँचाएगी। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को उनका जवाब दाखिल करने के लिए 21 जुलाई तक का समय दिया है।