गुवाहाटी हाई कोर्ट ने एक तलाक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर विवाहित हिंदू महिला ‘सिंदूर और शाखा’ पहनने से इंकार करती है, तो उसका पति उसे तलाक दे सकता है। मतलब कि इक्कीसवीं सदी के भारत में न्यायपालिका की नज़र में किसी महिला की चॉइस से ज़्यादा रीति-रिवाजों का मोल है।

दरअसल, इस केस में फैमिली कोर्ट ने पहले ही तलाक़ के आवेदन को खारिज कर दिया था। अब गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है। उच्च न्यायालय के मुताबिक, विवाहित हिंदू महिला अगर रिवाज के मुताबिक ‘सिंदूर और शाखा’ नहीं पहनती तो वो शादी से ही इंकार कर रही है। इसके लिए न्यायालय ने एप्लिकेंट की पत्नी के पूछ-ताछ के दौरान दिए गए बयान को एविडेंस बनाया है। पत्नी ने कहा था कि “मैं अभी सिंदूर नहीं पहन रही /लगा रही हूं क्योंकि मैं उसे अपना पति नहीं मानती।”

इसके साथ-साथ उच्च न्यायालय का कहना है कि महिला अगर पति के माता-पिता से अलग रहने को कहती है तो वो निर्दयी है। ये ‘मेंटेनेन्स एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एक्ट 2007’ के विरुद्ध भी है।

गुवाहाटी हाई कोर्ट के इस फैसले पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कोर्ट के फैसले किसी एक केस तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाज के लिए उदाहरण भी बन जाते हैं।

महिला के रीति-रिवाज न मानने को तलाक की वाजिब वजह ठहराना अपने आप में महिला के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है। अगर किसी एक मामले में महिला ऐसा मानती भी है, तो भी कोर्ट द्वारा महिला की इच्छा के बजाए सिंदूर ना लगाने को ही तलाक की वजह बताना सवाल खड़े करता है।

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