
सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड अनिवार्यता पर अहम फैसला सुनाते हुए आधार की कानूनी मान्यता बरकरार रखी है। मगर इसी के साथ SC ने आधार एक्ट में कई प्रावधानों में बदलाव कर दिए है। सरकार ने आधार को बैंक अकाउंट, मोबाइल से लिंक करने को ज़रूरी नहीं बताया है। वहीं कोर्ट के फैसले के बाद अब निजी कम्पनियां आधार नहीं मांग सकती है।
आधार कार्ड पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में 5 जजों की बेंच ने कहा कि सरकार को निर्देश दिए की सरकार बायॉमीट्रिक डेटा को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कोर्ट की इजाजत के बिना किसी और एजेंसी से शेयर नहीं करेगी।
कोर्ट ने केंद्र को ये भी हिदायत दी कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अवैध प्रवासियों को आधार कार्ड न मिले। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट की धारा 57 को रद कर दिया है। अब प्राइवेट कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकती हैं। इसके साथ कोर्ट ने बोर्ड एग्जाम में बैठने लिए CBSE अब आधार कार्ड की मांग नहीं सकती है और न ही स्कूलों में एडमिशन के लिए आधार अब जरूरी होगा।
जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार नामांकन के लिए यूआइडीएआई द्वारा नागरिकों के न्यूनतम जनसांख्यिकीय (जनसंख्या संबंधी) और बॉयोमीट्रिक डेटा एकत्र किए जाते हैं। किसी व्यक्ति को दिया गया आधार संख्या अनन्य है और किसी अन्य व्यक्ति के पास नहीं जा सकता।
Verdict on the constitutional validity of #Aadhaar: Justice AK Sikri says, "Aadhaar empowers the marginalised section of the society and gives them an identity, Aadhaar is also different from other ID proofs as it can't be duplicated" pic.twitter.com/ix9VEdw1nS
— ANI (@ANI) September 26, 2018
कोर्ट ने कहा कि ये ज़रूरी नहीं है कि हर चीज़ बेस्ट हो, लेकिन कुछ अलग भी चाहिए। जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार ने गरीबों को पहचान और ताकत दी है। उन्होंने ये भी कहा कि इसमें प्लीकेसी की संभावना नहीं है।
कोर्ट ने आधार की सिक्योरिटी पर भी सरकार को निर्देश दिए की वो इसके लिए सख्त सुरक्षा दें, इसमें लोगों के बायोमेट्रिक,आइरिश और फोटो की जानकारी ली जाती है। ये डेटा UIDAI के सर्वर में रहता है। जिसे भेद पाना बहुत मुश्किल है।
#Aadhaar matter: Justice AK Sikri asks Centre to "introduce strong data protection law as soon as possible" pic.twitter.com/rQyNMg8KTj
— ANI (@ANI) September 26, 2018
गौरतलब हो कि रिटायर्ड जज पुत्तासामी और कई अन्य लोगों ने आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि विशेषतौर पर आधार के लिए बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की दलील दी गई थी।
जिसके बाद कोर्ट में निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था, जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया।
बता दें कि आधार पर 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब चार महीने के दौरान 38 दिन तक इन याचिकाओं पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने ये फैसला 10 मई को अपने पास सुरक्षित कर दिया था.