Samar Raj

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के दूतों ने भारत सरकार को एक रिपोर्ट भेजकर उनके द्वारा देश में लागू किए गए नए आईटी कानून की आलोचना की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये नए कानून डिजिटल मीडिया यूजर्स की प्राइवेसी और आजादी का हनन कर सकते हैं।

दरअसल, यूएन के मानवाधिकार आयुक्त ऑफिस के विशेषज्ञों ने भारत के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी कानून, 2021 को लेकर भारी चिंता जताई है। उनका कहना है कि ये कानून अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार नहीं बने हैं।

रिपोर्ट में लिखा है, “हमें चिंता है कि यह नए कानून उस समय आए हैं जब दुनिया भर में महामारी फैली हुई है। और आपके देश में भी एक बड़े पैमाने पर किसान आंदोलन कर रहे हैं।

ऐसे समय में नागरिकों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी, सूचना पाने का अधिकार और निजता का अधिकार बहुत जरूरी हो जाता है।”

इसी के साथ, रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत टेक्नोलॉजी के मामले में एक ग्लोबल लीडर है। भारत के पास ताकत है कि वह (अंतराष्ट्रीय स्तर पर) डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाएं। लेकिन इस नए कानून से एकदम उल्टा होगा।

अभी हाल ही में भारत सरकार और ट्विटर के बीच घमासान छिड़ा हुआ है। भारत सरकार बार-बार ट्विटर को देश के कानून के हिसाब से काम करने के लिए नोटिस भेज रही है।

संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार को मानवअधिकार कार्यकर्ता और दूसरी स्टेकहोल्डर्स से आईटी कानून पर सलाह लेने के लिए कहा है। लेकिन सरकार का कहना है कि बाहरी कंपनियों को भारत के कानून के हिसाब से ही काम करना पड़ेगा।

इसी के साथ केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि नए कानून इसलिए बनाए गए हैं ताकि कोई भी डिजिटल मीडिया का ‘गलत उपयोग’ ना करें।

सामाजिक कार्यकर्ताओं और एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत सरकार इन कानूनों का उपयोग करके उनके खिलाफ उठने वाली सभी विरोध की आवाज़ों को दबाना चाहती है।

जब देश में सभी टीवी चैनलों को अपना एजेंडा चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हो, तब यह डिजिटल मीडिया ही सरकार की पॉलिसी की आलोचना करने का स्पेस बच जाता है।

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