बेरोजगारी और महामारी में सारे रिकॉर्ड तोड़ने वाले देश की टीवी मीडिया रिया सुशांत, रनौत और राउत के विवाद में इस तरह से व्यस्त हो चुकी है कि मानो सारी समस्याओं का समाधान इसी में है।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद महीनों तक तरह तरह की बयानबाजी करने वाली कंगना रनौत को जरूरत से ज्यादा कवर करने वाली मीडिया ने सामने से भी एक बयानवीर को ढूंढ लिया जिनका नाम है- संजय राऊत, जो शिवसेना के नेता हैं।

इसके बाद तो रिया सुशांत मामला रनौत और राउत विवाद के रूप में तब्दील हो गया।

भाजपा समर्थकों और मीडिया का साथ पाकर कंगना रनौत बार-बार उटपटांग बयानबाजी करती रहीं, उन्हीं के अंदाज में सतही राजनीति करते हुए शिवसेना ने भी पलटवार कर दिया।

इसी बीच कंगना रनौत को वाई कैटेगरी की सुरक्षा दे दी गई तो उन्होंने कहा ‘जो उखाड़ सकते हो उखाड़ लो।’

बिल्कुल ऐसे ही अंदाज में बीएमसी ने बदले की कार्यवाही के तहत कंगना के कथित अवैध निर्माण को गिरा दिया और सामना अखबार में छपा-‘उखाड़ दिया।’

राजनीति के इस निचले स्तर को देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने का श्रेय जाता है मीडिया को- जिसने दिन रात ऐसे ही बयानवीरों को तूल दिया।

संभवतः इस कोशिश में कि बेवजह का विवाद दिखाने से लोगों का ध्यान बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और महामारी की ओर नहीं जाएगा।

मीडिया की इन्हीं करतूतों को एक्सपोज करते हुए पत्रकार देवेश मिश्रा रात साढ़े 12 बजे एक ट्वीट करते हैं। उन्होंने लिखा- ‘पिछले बारह घंटे में AajTak के यूट्यूब पेज पर कुल 70 वीडियो अपलोड हुए जिसमें अकेले कंगना पर 60 वीडियो हैं। दिल्ली झुग्गी पर 0, बेरोज़गारी प्रदर्शन पर 0, हरियाणा में किसानों के ऊपर लाठीचार्ज पर 0,
इन नरभक्षी पिशाचों से खाना कैसे हज़म होता होगा।’

पत्रकार ने दावा किया है कि इस दौरान आज तक न्यूज़ चैनल ने किसानों पर हुए लाठीचार्ज और झुग्गी तोड़े जाने संबंधित फैसले पर कोई वीडियो नहीं अपलोड किया है।

मीडिया की ये करतूत देखने के बाद क्या इस बात में थोड़ा भी संदेह रह जाता है कि दिन-रात ये तमाम टीवी चैनल इसलिए काम करते हैं ताकि जनता को उनके असल मुद्दे से भटकाया जा सके।

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