माननीय कप्तान साहब को कोई बताए कि छः साल के बच्चे के सामने उसके बाप को पीटने वाले पुलिसकर्मियों को भी सोचना चाहिए थी कि ये भी किसी परिवार का ही होगा।

ट्रक से अवैध वसूली न मिलने पर जिस पुष्पेन्द्र यादव को गोली मार दिया गया उसकी भी अभी दो-तीन महीने पहले शादी हुई थी और एक परिवार था।

मुंबई में एक बेचारे नौजवान को केवल छेड़खानी की झूठी शिकायत पर हवालात में पीट-पीटकर मारने वाले पुलिसकर्मियों को भी सोचना चाहिए था कि इसका भी परिवार होगा।

ट्रेन में पुलिसकर्मियों के रिश्वत का वीडियो बनाने वाले अंकित सिंह नाम के इंजिनियर को चलती ट्रेन से फेंककर जान से मारने वाले भी पुलिस कर्मी ही थे।

IPS बोले- हमारा मानवाधिकार नहीं है क्या, लोग बोले- खुद पिटे तो मानवाधिकार याद आ गया ?

जौनपुर में गलत पहचान पर एक आटो ड्राईवर को हवालात में बंद करके पीट-पीटकर जान से मारने वाले भी पुलिस कर्मी ही थे और उस आटो वाले का भी परिवार था।

पूरे देश में हर दिन सैकड़ों पुलिस वाले पकड़े जाते हैं मुकदमे बढ़ाने घटाने नाम निकालने एफआर लगाने व इनकाउंटर करने के नाम पर पैसे लेते हुए।

तो कप्तान साहब ये बताइए कि पैसा लेकर झूठी चार्जशीट बनाकर किसी के जिंदगी के दस-बारह साल जेल में बंद रखवाना क्या पारिवारिक कृत्य है !!!

पैसा न मिलने पर इनकाउंटर करना क्या परिवार वालों का संवैधानिक अधिकार है ??

किसी आम आदमी से बदतमीजी से बात करना और छोटी सी बात पर हाथ उठा देना या लाठी चला देना क्या समाजसेवा में आता है।

ट्वीटर पर ट्रेंड हुआ #WhereIsAmitShah, लोग बोले- देश का गृहमंत्री सिर्फ MLA खरीदने के लिए है क्या?

रही बात बैनर लेकर आपके खड़ा होने की, बैनर लेकर खडा होने पर भी आपकी बेवकूफी छलक कर दिख रही है और आपका घमंड भी।

इन्हीं पुलिस वालों को जब बिमारी के बावजूद आप जैसे अधिकारी छुट्टी नहीं देते और नेताओं को नमस्ते न करने पर सस्पेंड किया जाता है तब ये बैनर क्या आपके अंग विशेष में चला जाता है तब पुलिस वालों का परिवार नहीं दिखता क्या आपको।

( ये लेख देश दीपक मिश्रा की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

 

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