भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए देश के प्रधानमंत्री भी गुजरात चुनाव प्रचार में कूदे पड़े हैं। विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। लेकिन मोरबी पुल हादसे ने ‘गुजरात मॉडल’ पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

गुजरात हाई कोर्ट ने इसपर चिंता जताते हुए राज्य सरकार से सभी पुलों की हालत का सर्वे करने का आदेश दे दिया है।

कोर्ट ने सभी पुलों की लीस्ट मांगी है। सरकार का काम है कोर्ट को ये बताना कि कितने पुलों की स्थिति मोरबी पुल जैसी है।

ध्यान देने वाली बात है कि गुजरात में वर्ष 1998 से अब तक केवल भाजपा की ही सरकार रही है। तो राज्य में हो रहे “विकास और भ्रष्टाचार”, दोनों के लिए वही ज़िम्मेदार है।

दरअसल, 30 अक्टूबर को गुजरात के मोरबी में अंग्रेज़ों के ज़माने का बना सस्पेंशन ब्रिज टूटने से 141 लोगों की मौत हो गई। इसमें से 47 बच्चे थे।

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट से मामले की आगे की जांच करने के लिए कहा था। अब हाई कोर्ट ने सरकार से राज्य के सभी पुलों का सर्वे करने के लिए कह दिया है।

मोरबी ब्रिज हादसे से जुड़े जितने तथ्य सामने आ रहे हैं, उतना ही “भ्रष्टाचारी सिस्टम” एक्सपोज़ होता जा रहा है। इससे पहले गुजरात हाई कोर्ट में नगर पालिका कह चुका है कि मोरबी पुल को लोगों के लिए नहीं खोला जाना चाहिए था। फिर क्यों खोला गया?

इस हादसे पर FSL (फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि ब्रिज का लंबे समय से रखरखाव नहीं किया गया था। इसपर काम करने वाले कर्मियों को तकनीकी ज्ञान नहीं था। इस पुल के रखरखाव, संचालन और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ओरेवा कंपनी की थी।

पुल की खराब हालत के बावजूद कंपनी ने 3 हज़ार से अधिक टिकट बेंचे थे। हादसे की जांच कर रही टीम ने दावा किया था कि इसी ओरेवा कंपनी ने ब्रिज के रेनोवेशन के लिए आवंटित दो करोड़ रुपये में से केवल 12 लाख रुपये ही खर्च किए गए थे।

गुजरात चुनाव में जनता को विकास के सपने दिखाए जा रहे हैं। लेकिन ओरेवा कंपनी और नगर निगम द्वारा मिलकर किए गए इस ‘भ्रष्टाचार’ पर कोई जवाब नहीं दिया जा रहा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here