एक लोकतांत्रिक देश में चुनाव आयोग को निष्पक्ष और स्वतंत्र होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो देश को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में गहन चिंतन चल रहा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर बड़े फैसले लिए जाने हैं।

केंद्र सरकार ने मामले की जांच कर रही पीठ को चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल दी।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल करते हुए पूछा कि “ये नियुक्ति बिजली की तेजी से क्यों हुई? आखिर, 24 घंटे के भीतर ही नियुक्ति की सारी प्रक्रिया कैसे पूरी कर ली गई?” कोर्ट ने कानून मंत्री से चुनाव आयुक्त के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए चार नाम का भी आधार पूछा।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ही सरकार से चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुडी फाइल सौंपने को कहा था। सरकार ने फाइल को संविधान पीठ के सामने पेश किया जिसके बाद पीठ ने सवालों की लड़ी लगा दी।

जस्टिस केएम जोसफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं।

केंद्र सरकार ने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि तय नियमों के हिसाब से ही नियुक्ति हुई थी। हालाँकि, इस जवाब से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखा है। आने वाले दिनों में तय किया जाएगा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाए या नहीं।

दरअसल, कल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त ऐसा होना चाहिए जो ज़रूरत पड़ने के समय प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर सके।

पूर्व नौकरशाह अरुण गोयल ने 21 नवंबर को देश के नए चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। अब उनकी नियुक्ति ही सवालों के घेरे में है।

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