जम्मू कश्मीर के कठुआ में पिछले साल एक दर्दनाक घटना घटी थी। जिसमें एक बच्ची के साथ गैंगरेप किया गया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई। अब इस मामले में पठानकोट की विशेष अदालत ने सांझी राम, परवेश दोशी और दीपक खजुरिया को उम्रकैद की सजा सुनाई।

वहीं हेड कांस्टेबल तिलकराज, असिस्टेंट सब इन्सपेक्टर आनंद दत्ता और एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर) सुरेंद्र वर्मा को 5-5 साल की कैद और 50-50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है। कोर्ट का ये फैसला उन लोगो के निराशा से भरा हुआ जिन लोगो ने बलात्कारियो के समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाली थी।

जिसमें बीजेपी के कई नेता भी शामिल हुए थे। क्या अब उन लोगो को देश से माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए? जिन लोगों ने बलात्कारियों के समर्थन में रैली निकाली थी।

कठुआ के बलात्कारियों के लिए रैली निकालने वाले BJP नेताओं को पूरे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए

इस मामले पर पत्रकार अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया पर लिखा- ये तिरंगाधारी कठुआ के उन्हीं दरिंदों को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे थे, जिन्हें उम्रकैद की सजा हुई है। इनमें नेता, वकील और मंत्री सब शामिल थे। अलीगढ मर्डर केस में कातिलों को बचाने कौन निकला है? फिर कठुआ और अलीगढ़ एक कैसे हो गया धर्मांधों? जबरदस्ती हिन्दू-मुस्लिम मत करो?

गौरतलब हो कि हाल ही में यूपी के अलीगढ़ में ही इसी तरह का मामला सामने आया था। जिसमें आरोपी शख्स मुसलमान है ये जानने के बाद मीडिया ने खूब जोर लगाया की इस मामले को धार्मिक एंगल दिया जाये।

मगर वो नाकाम रहे क्योंकि कठुआ बलात्कार का मामला एक धर्म विशेष के डराने के लिए था। वहीं अगर अलीगढ़ मामले की बात करे तो वहां पैसे की लेन-देन की वजह से मासूम बच्ची का क़त्ल कर दिया गया।

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