पूरा देश इन दिनों कोरोना की दूसरी लहर से त्राहिमाम कर रहा है। लाखों की संख्या में लोग ऑक्सीजन के अभाव में मर गए। आश्चर्य की बात है कि हमारे यहां की सरकार अपने नागरिकों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा सकी और लोगों को असमय मौत के मुंह में जाना पड़ गया।

हैदराबाद के सांसद और ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ऑक्सीजन के बहाने केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला है।

ओवैसी ने कहा कि “जो सरकार 100 ऑक्सीजन प्लांट नहीं लगा सकी, वह चाहती है कि 1.37 बिलियन लोग अपनी नागरिकता साबित करें।”

ओवैसी ने ऑक्सीजन किल्लत के साथ ही विवादित नागरिकता कानून भी सरकार को घेरा।

मालूम हो कि पूरे भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने त्राहिमाम मचा रखा है। विशेषज्ञों का पहले से ही आंकलन था कि भारत में जल्द ही कोरोना वायरस की दूसरी लहर आने वाली है जो पहले लहर से ज्यादा खतरनाक साबित होने वाली है लेकिन हमारी सरकार कान में तेल डालकर सोई रही।

जिनके उपर इस महामारी से लड़ने की जिम्मेवारी थी, वह सारे काम छोड़कर ममता बनर्जी को हराने में जुटे रहें।

पूरी भारत सरकार और भाजपा के मुख्यमंत्री अपने अपने राज्यों को छोड़कर पश्चिम बंगाल पहुंच गए, वहां डेरा डाले रहें और अपनी पार्टी को जिताने के लिए चुनाव प्रचार करते रहें।

उधर चुनाव प्रचार चल रहा था, इधर कोरोना अपना जोर पकड़ रहा था. ऑक्सीजन की किल्लत होनी शुरु हो चुकी थी लेकिन सरकार तो चुनाव में व्यस्त थी।

जाहिर तौर पर अगर शुरुआती दौर में ही ऑक्सीजन किल्लत से निपटने के लिए काम शुरु हो जाता तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें नहीं होती।

वहीं इस सरकार के निशाने पर सिर्फ एक मजहब विशेष के लोग रहते हैं। हर कीमत पर उन्हें निपटाने की रणनीति इस सरकार द्वारा चली जाती है। नागरिकता कानून भी इन्हीं रणनीतियों में से एक था।

जब सरकार को स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने के उपर काम करना चाहिए था तो वो नागरिकता कानून बनाने में व्यस्त थी।

एक ऐसा कानून जिसकी कोई जरुरत इस देश को नहीं है। देश को जरुरत है विकास की, रोजगार सृजन की, बेहतर मेडिकल सुविधाओं की तो यह सकार सब कुछ छोड़ कर विवादित नागरिकता कानूनों को थोपने में जुटी हुई है।

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