साल 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी, देश की सभी राजनीतिक पार्टियों के मुकाबले सबसे ज्यादा चंदा हासिल करती है। इस चंदे का इस्तेमाल भाजपा द्वारा देश में होने वाले चुनावों पर खर्च किया जाता है।

इसी बीच खबर सामने आई है कि 2019-20 वित्तीय वर्ष में भाजपा को इलेक्ट्रोल बांड के जरिए लगभग 2,555 करोड़ रुपए का चंदा हासिल हुआ है।

इसका खुलासा चुनाव आयोग के समक्ष पेश की गई वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है। जिसमें भाजपा ने यह जानकारी चुनाव आयोग से सांझा की है।

इससे पहले 2018-19 वित्तीय वर्ष में भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड से 1450 करोड़ रूपए का चंदा मिला था।

बताया जाता है कि देश के प्रमुख पांच राजनीतिक दलों के कुल चंदे के मुकाबले सिर्फ भाजपा को ही इलेक्ट्रोल बांड के जरिए मिले इस चंदे की रकम दोगुनी से भी ज्यादा है।

ऐसे में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या इलेक्ट्रॉल बांड योजना इसी मकसद से बनाई गई थी? ताकि भारतीय जनता पार्टी को इसका फायदा मिल सके।

जानकारी के लिए आपको बता दें कि राजनीतिक दलों को इलेक्ट्रॉल बांड के जरिए चंदा देने के लिए सही तरीके से पैसे का इस्तेमाल किए जाने को बढ़ावा देने का नाम दिया गया था।

अब इस योजना के तहत चंदा देने वाले लोगों की जानकारी भी गुप्त रखी जा रही है। ऐसे सवाल भी उठ रहे हैं कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड के जरिए काले धन को बढ़ावा मिल रहा है।

मोदी सरकार द्वारा यह योजना देश के बड़े पूंजीपतियों की पहचान सामने लाए बिना उनके काले धन को वाइट मनी में तब्दील किया जा रहा है।

इस योजना की आलोचना करने वाले लोगों का कहना है कि इलेक्ट्रोल बांड योजना के जरिये एक तरह से मनी लॉन्ड्रिंग की जा रही है।

दरअसल साल 2018 में सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत करते हुए यह दावा किया गया था कि इसके जरिए राजनीतिक फंडिंग में ट्रांसपेरेंसी आएगी और चंदे में साफ़ सुथरा धन आएगा।

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