उत्तरप्रदेश में शहरों के नाम बदलने का सिलसिला रुक नहीं रहा है. क्या इस बार आगरा की बारी है? योगी सरकार शहरों के नाम बदलकर किस झूठे गर्व को सेलिब्रेट कर रही है.

इलहाबाद और फैजाबाद के बाद इस बार आगरा का नाम बदल देने की मांग उठी है. विधायक जगन प्रसाद गर्ग ने मांग की है कि आगरा को ‘आगरावन’ या ‘अग्रवाल’ नाम किया जाए. इसके पीछे उनका तर्क है की ताजमहल को एक राजपूत राजा का बनवाया था जिसे शिवमंदिर कहते हैं.

आगरा शब्द का कोई अर्थ नही होता है. इस शहर में सबसे ज्यादा अग्रवाल समाज के लोग रहतें हैं. इसलिए आगरा का नाम ‘अग्रवाल’ रख दिया जाए. इसी कुतर्क की कड़ी में संगीत सोम मुज्जफरनगर का नाम बदलने की मांग उठा रहे है और इसका नाम ‘लक्ष्मीनगर’ करने की मांग कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, “मुगलों ने यहां की संस्कृति को मिटाने का काम किया है. खासतौर से हिंदुत्व को मिटाने का काम किया है. हमलोग उस संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रहे हैं. बीजेपी उसपे आगे बढ़ेगी.”

इससे पहले बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने शिवसेना ने औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने की मांग की है.

बता दें कि इससे पहले गुजरात के अहमदाबाद शहर का नाम बदले जाने की बात आई थी. माना जा रहा है कि गुजरात सरकार अहमदाबाद का नाम कर्णावती रखने पर विचार कर रही है.

इस तरह के मांग को मान कर योगी सरकार आखिर साबित क्या करना चाहती है. वह लोगों के अंदर ‘फल्स-प्राइड’ की भावना उत्पन कर रही है.

अगर गौर किया जाये की जितने भी शहरों के नाम बदल दिए गयें या बदलने की मांग उठाई जा रही हैउनमे से ज्यादातर  नामों का रिश्ता वेद-पुरानों से है. क्या योगी सरकार उत्तरप्रदेश के लोगों को कलयुग से त्रेता युग में ले जाने की प्लान है?

यह सब सिलसिलेवार तरीके से इसलिए भी हो रहा क्योंकी हिंदी पट्टी में भारतीय जनता पार्टी की हालत आगामी चुनाव में खराब होने वाली है और वह बस लोगो को इन सब गैरजरूरी बहस में उलझाकर असली सवाल को गायब कर देना चाहती है.

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