केंद्र में बैठी भाजपा सरकार बेरोजगारी, ग़रीबी, भुखमरी, गिरती अर्थव्यवस्था जैसी भयावह परिस्थितियों से न लड़कर, पूरे देश मे छात्रों से लड़ रही है। इलाहाबाद, बीएचयू, जादवपुर यूनिवर्सिटी, एएमयू, जामिया के बाद एक बार फिर से जेएनयू सरकार के निशाने पर है।
जेएनयू जो आवाज़ है महिला, दलित,पिछड़े, ग़रीब छात्रों की, फ़ीस हाइक के ज़रिये हमला है इन वंचित तबके के आवाज़ों से। पिछले कुछ सालों में जिस तरह से 13 पॉइंट्स रोस्टर से लेकर, दलित आंदोलन, पर जिस तरह नौजवानों के एका ने सरकार को झुकने के लिये मजबूर किया है, सरकार इन आवाज़ों के माध्यम बनने वाले, हक़- अधिकार पर समझ बनाने वाले विश्वविधालयों को ही समाप्त कर देना चाहती है।
छात्र हमेशा सरकारों के ख़िलाफ़ लड़ते रहे हैं, सवाल उठाते रहे है, पर ये सरकार पूरे देश में छात्रों से लड़ रही है। पर छात्रों ने भी साबित कर दिया है कि कोई पुलिस, लाठीचार्ज, बर्बरता हमारे हौसलों को कमज़ोर नहीं कर सकती। हम लड़ते रहेंगे सस्ती शिक्षा- सबका अधिकार के सवाल पर।
लोकतंत्र में ये काले इतिहास के रूप में दर्ज होगा कि अंदर संसद चल रही थी, और बाहर छात्रों को पीटा, घसीटा जा रहा था। जब सरकार चलाने वाले गुंडे हों तो सड़कों पर आम नागरिकों के साथ गुंडागर्दी होना स्वाभाविक है।
(ऋचा सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं)