केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार के झूठे भारत विकास की तस्वीर अब दुनियाभर के देशों के सामने आ चुकी है।

भारत में अब कोरोना वैक्सीन की कमी के साथ-साथ अन्य मेडिकल सुविधाओं की किल्लत ने उजागर कर दिया है कि कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद सरकार ने इससे लड़ने के लिए किस तरह के इंतजाम किए हैं।

कोरोना महामारी से लड़ने की जगह देश की सरकार चुनाव लड़ने में व्यस्त थी। इस मामले में देश की सुप्रीम कोर्ट ने भी मोदी सरकार को फटकार लगाई है।

इस कड़ी में अब ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने भी भारत सरकार की आलोचना की है।

उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के दौरान भी भारत में नेताओं को ऑक्सीजन और दूसरी मेडिकल चीजों की चिंता नहीं है। इसकी जगह वह अपनी आलोचना और छवि की चिंता कर रहे हैं।

उन्होंने बताया है कि भारत में लोग गैर सरकारी संस्थाओं से मदद मांग रहे हैं। कोरोना महामारी में लोगों की मदद करने वाली ऐसी संस्थाओं के पास कोरोना मरीजों की कोई कमी नहीं है।

देश की सरकार ने भले ही मेडिकल सप्लाई को बढ़ाने की कोशिश की है। लेकिन अभी भी ज्यादातर अस्पतालों में ना तो ऑक्सीजन की आपूर्ति हो रही है और ना ही अन्य मेडिकल सुविधाओं की।

ह्यूमन राइट्स वॉच के दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा है कि भारत सरकार की विफलताओं के बारे में जब भी आलोचना की जाती है। तो सरकार इस पर नाराजगी जाहिर करती है।

जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सरकार को कोरोना महासंकट से बचने के लिए सुझाव देने की कोशिश की। तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने उनकी बात मानने की बजाय कांग्रेस पर ही आरोप लगा डालें।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस कोरोना संक्रमण के बारे में झूठ फैलाने की कोशिश कर रही है।

उत्तर प्रदेश में जब ऑक्सीजन और दूसरी स्वास्थ्य संबंधी चीजों की कमी आई तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया।

इसके साथ ही इस मामले में शिकायत करने वाले लोगों के खिलाफ एनएसए लगाकर उन्हें सजा देने का ऐलान कर डाला।

भारत में हर दिन 3 से 4 हजार लोग मर रहे हैं। हर रोज लगभग 4 लाख लोग कोरोना संक्रमित पाए जा रहे हैं। लेकिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी छवि खराब होने की चिंता सता रही है।

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