दिल्ली दंगों के मामले में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है। पुलिस ने कोर्ट में बताया है कि उमर खालिद से दंगों से जुड़े 11 लाख पेज डेटा के साथ सवाल-जवाब किए जाने हैं।
दूसरी तरफ सुशांत मामले के ड्रग एंगल में फंसी रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शौविक चक्रवर्ती सहित छह लोग 22 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में हैं।
इस मामले में एनसीबी केस से जुड़ा हर डेटा निकाल रहा है। लेकिन कमाल की बात ये है कि इस देश में कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान मारे गए प्रवासी मजदूरों का आंकड़ा जुटाने में नाकामयाब है।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा मानसून सत्र के पहले ही दिन ऐसा बयान जारी किया गया। जिसे सुनकर विपक्ष के साथ-साथ आम जनता भी हैरान रह गई।
दरअसल विपक्ष द्वारा एक सवाल के जवाब में केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा है कि सरकार के पास प्रवासी मजदूरों की मौत की संख्या को लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में मुआवजा देने का ‘सवाल नहीं उठता है।
इस मामले में पत्रकार स्तुति मिश्रा ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। स्तुति मिश्रा ने ट्वीट कर लिखा है कि “उमर खालिद को जेल में रखने के लिए 11 लाख पेज, सैकड़ों व्हाट्सएप चैट यह पता लगाने के लिए कि रिया चक्रवर्ती क्या धूम्रपान कर रही थी, लेकिन 21 वीं सदी में दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी के दौरान मारे गए प्रवासियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।”
गौरतलब है कि पहले मोदी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गृहराज्य तक पहुंचाने में कोई मदद नहीं की। अब लॉक डाउन में मरने वाले मजदूरों का कोई आंकड़ा होने से ही इंकार कर दिया। जबकि लाखों की संख्या में मजदूर सड़कों पर उतरे थे।
इस दौरान देशभर में कई जगह सड़क हादसे हुए। इसमें कई मजदूरों की मौत हुई। मोदी सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया कि ये सरकार गरीब विरोधी है।