संसद का नया सत्र शुरू होते ही सरकार ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया है। जनविरोधी नीतियों और बयानबाजी के लिए बदनाम मोदी सरकार ने इस साल की सबसे बड़ी त्रासदी को प्राथमिकता में मानने से इनकार कर दिया है।

कोरोना लॉकडाउन की वजह से करोड़ों प्रवासी मजदूरों को विस्थापन करना पड़ा, ये बात पूरा देश जानता है, खुद मोदी सरकार भी मानती है।

जगह-जगह मजदूरों की मौत हो गई ये बात भी पूरा देश जानता है मगर मोदी सरकार इस बात को नहीं मानती है।

इसी मुद्दे पर मोदी सरकार के मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में कहा कि प्रवासी मजदूरों के मरने का कोई आंकड़ा नहीं है इसलिए मुआवजे का कोई सवाल ही नहीं बनता है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राजनीतिक रणनीतिकार संजय यादव लिखते हैं-

कल केंद्र सरकार ने लोकसभा में लिखित उत्तर देते हुए बताया कि:-

* लॉकडाउन में कितने प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई, कोई आँकड़ा नहीं है।

* उन्हें क्या मुआवज़ा मिला, कोई आँकड़ा नहीं।

* असंगठित क्षेत्र में कितना नुक़सान हुआ, कोई आँकड़ा नहीं।

* कोरोना के चलते किस राज्य में किस सेक्टर में कितनी नौकरियाँ गयी, कोई आँकड़ा नहीं।

* 20 लाख करोड़ के कथित आर्थिक पैकेज ने अर्थव्यवस्था को क्या फ़ायदा पहुँचाया, कोई आँकड़ा नहीं।

हाँ लेकिन इनकी एजेन्सियों को यह सब पता रहता है कौन फ़ालतू का हीरो-हिरोइन कब, कहाँ, कैसे और कितना नशा करते है?

इन्हें मज़दूर, किसान, छात्र, नौजवान और बेरोजगारों की कोई चिंता नहीं है। और हाँ बता दूँ इनमें से 80-90 फ़ीसदी बेरोज़गार और किसान “हिंदू” ही है। भारतीय तो है ही।

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