कोरोनावायरस के दौर में भारत के प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन की वजह से कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। सरकार द्वारा मदद ने मिलने के बाद हजारों की तादाद में प्रवासी मजदूरों ने पैदल सफर कर अपने घरों तक पहुंचने का फैसला लिया।

जिनमें से कई लोग पैदल चलते-चलते इस दुनिया से ही चले गए। वहीँ कई पैरों में खून लिए अपने घर पहुंचे। लेकिन घर पहुंचते ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

इसी बीच अब मोदी सरकार ने लॉकडाउन में मरने वाले प्रवासी मजदूरों के परिवारों को मुआवजा देने से इनकार कर दिया है। कल लोकसभा में केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कहा है कि प्रवासी मजदूरों की मौत को लेकर सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है। तो ऐसे में उनके परिवारों को मुआवजा देने का सवाल ही नहीं उठता।

दरअसल सदन में विपक्ष द्वारा मोदी सरकार से कोरोनावायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन में मरने वाले प्रवासी मजदूरों के परिवारों को मुआवजा देने का मुद्दा उठाया गया था।

जिसपर सरकार की तरफ से ये जवाब सामने आया। केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने ये माना है कि लॉकडाउन के दौरान 1 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर देशभर के कोनों से अपने गृह राज्य पहुंचे हैं।

संसद में चल रहे मानसून सत्र के पहले दिन विपक्ष ने यह सवाल उठाए थे कि क्या सरकार के पास अपने गृह राज्य लौटने वाले प्रवासी मजदूरों का कोई आंकड़ा है?

इस दौरान कितने प्रवासी मजदूर मरे ? क्या मरने वाले के परिवार को आर्थिक सहायता या मुआवजा दिया गया ?

विपक्ष के इन सवालों का केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लिखित में जवाब देते हुए बताया कि ऐसा कोई आंकड़ा मेंटेन नहीं किया गया है। ऐसे में इसपर कोई सवाल नहीं उठता है। सरकार के जवाब पर विपक्ष ने खूब आलोचना की और हंगामा हुआ।

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