मोदी सरकार अब “नो डाटा” सरकार बन चुकी है। उनके पास न तो किसानों की आत्महत्या का डाटा है, न तो मृतक प्रवासी मज़दूरों का डाटा है और न ही उन स्वास्थ्य कर्मियों का जिनकी मौत कोरोना के कारण हुई।

अब इस लिस्ट में एक और चीज़ जोड़ लीजिए- सरकार के पास किसानों की आय का भी डाटा भी नहीं है।

जनसत्ता में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 के बाद सरकार ने किसानों की औसत आय का डाटा देना बंद कर दिया है। इसी कारण सोशल मीडिया पर कईं लोग NDA को “नो डाटा अलायन्स” या फिर “नो डाटा अवेलेबल” बुला रहे हैं।

हालांकि, मार्च महीने में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार के पास किसानों की आर्थिक स्तिथि के बारे में कोई डाटा नहीं है।

उन्होंने तो कहा था कि नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) ने इससे जुड़ा सर्वे आखिरी बार 2013 में किया था।

उस सर्वे के मुताबिक लगभग 52% कृषि परिवार कर्ज़ के बोझ तले दबे हैं। ये अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि देश के अभी के आर्थिक हालातों में किसानों की स्थिति और ज़्यादा खराब हो गई होगी।

किसानों की इस स्थिति का थोड़ा बहुत ज़िम्मेदार मीडिया भी है। जब देश भर में किसान अपनी बात रखने सड़कों पर निकलते हैं तो उनकी आवाज़ नहीं सुनी जाती। मीडिया चैनलों पर उनकी तकलीफ़ दिखाने के बजाए रिपोर्टर एक्टरों की गाड़ियों के पीछे भागते हैं।

जिस देश में करीब 60% परिवार खेती-बाड़ी करते हैं वहां किसानों के मुद्दों को मीडिया द्वारा फुटेज नहीं दी जाती। उस देश की सरकार के पास न तो किसानों की आत्महत्या का डाटा होता है और न ही उनकी आमदनी का।

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