राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सविंधान दिवस समारोह में न्यायपालिका की विफलता और अक्षम होने का सबूत देश के सामने रखा। उन्होंने कहा कि ‘‘कहा जाता है कि जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है, हमें और जेलों की स्थापना की जरूरत है?
अगर हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं तो फिर और जेल बनाने की क्या जरूरत है? हमें उनकी संख्या कम करने की जरूरत है।”
दरअसल कल सविंधान दिवस समारोह में देश की न्यायपालिका के कार्यक्रम में राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का संबोधन था। जिसमें देश के लगभग सभी बड़े जज और वकील मौजूद थे।
अपने संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मू ने मामूली अपराधों के लिए वर्षों से जेलों में बंद गरीब लोगों की मदद करके वहां कैदियों की संख्या कम करने का सुझाव दिया।
उन्होंने आगे कहा, आपको जेलों में बंद इन गरीब लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है। जानने की कोशिश कीजिए कि आखिर कौन हैं ये लोग।
आगे भावुक होते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बोलती हैं- “ज़रा उन लोगों के लिए सोचिये जो मामूली केस जैसे थप्पड़ मारने के लिए जेल में कई सालों से बंद हैं, उनके लिए सोचिए। उनको न तो अपने अधिकार पता है, न ही सविधान की प्रस्तावना, न ही मौलिक अधिकार, न ही मौलिक कर्तव्य।
उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा है, उनके घरवालों में इतनी हिम्मत नहीं है की उनके लिए मुकदमा लड़ सकें। न्याय पाने के चक्कर में उन्हें ये डर होता है कि कहीं उनकी जमा पूंजी और ज़मीन न बिक जाए।
राष्ट्रपति ने कहा- जिंदगी खत्म करने वाले तो बाहर घूमते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली जुर्म में वर्षों जेल में पड़ा रहता है. कौन हैं ये लोग, इनकी जानकारी लीजिए, इनके बारे में पता कीजिए।
शायद राष्ट्रपति ने न्यायपालिका का वह डर देश के सामने रखा है जो इस देश के गरीब और नीचे तबके के लोगो में हैं। वह डरते हैं अपने हक़, अपने अधिकार की लड़ाई लड़ने से।
देश की जेलों में बंद 4,78,600 कैदियों में से 3,15,409 कैदी एससी / एसटी और ओबीसी है मतलब यह आंकड़ा लगभग 65% होता है। अब इस देश के जजों और न्यायपालिका को यह डर और आंकड़ा कम करने की जरूरत है।