ऐसा लगता है कि हमारे देश में संवेदना बिल्कुल खत्म हो चुकी है. देश का एक बेटा नवीन यूक्रेन में युद्ध की भेंट चढ़ गया. बेहद दुखद परिस्थितियों में नवीन ने महज 21 साल की उम्र में संसार को अलविदा कह दिया.

पूरा देश इस घटना से दुखी है लेकिन गोदी मीडिया एक अलग ही कहानी गढ़ने में जुटी हुई है.

आज तक चैनल का एक संवाददाता इस घटना की जानकारी देते हुए कह रहा है कि देखिए, ये बहुत ही दुखद है कि एक भारतीय छात्र की मौत हुई है।

लेकिन मैं एक चीज स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि भारतीय दूतावास ने लड़ाई शुरु होने से चार दिन पहले यानी कि एक सप्ताह पहले ही यह एडवाइजरी जारी कर दी थी कि सभी छात्र या फिर भारतीय नागरिक, जिनका यहां रहना बहुत ज्यादा जरुर नहीं है, वो यूक्रेन छोड़ दें.

संवाददाता आगे कहता है कि सब कुछ उपलब्ध था. फ्लाइट्स जा रही थीं लेकिन ये छात्र और उनके माता पिता ने यह तय किया कि हम यहां रहना चाहते हैं, हमारे लिए यहां कुछ चीजें जरुरी हैं. उन्होंने इस एडवाइजरी को सीरियसली नहीं लिया.

चापलूसी की सारी हदें पार करते हुए आज तक का यह संवाददाता कहता है कि मैंने करीब 8 देशों के लोगों से मुलाकात की है,

सबका यह कहना है कि इंडियन गर्वमेंट और इंडियन एंबेसी जो काम कर रही है, दूसरे किसी भी देश की सरकार नहीं कर पा रही है.

राजेश पवार नाम का यह संवाददाता आगे कहता है कि मैं आपको यकीन दिला रहा हूं ये जो मौत हुई है वो दुखद है लेकिन इंडियन गर्वमेंट जो कर रही है, वो किसी दूसरे देश की सरकार नहीं कर रही है.

मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं कि भारत सरकार किसी भी दूसरी सरकार से ज्यादा काम कर रही है.

 

अगर ये संवाददाता सही कह रहा है तो फिर यूक्रेन में फंसे छात्र जो संकट में होने का वीडियो जारी कर रहे हैं और सरकार समेत दूतावास पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं, क्या वो गलत है ?

वैसे यूक्रेन में फंसे बच्चे यह भी कह रहे हैं कि भारत की मीडिया जो भी यहां की खबर दिखा रही है, वह फर्जी है, झूठ है.

आज तक चैनल पर ही एक छात्र ने जैसे ही यूक्रेन के मुद्दे पर अपनी पीड़ा बताते हुए भारत सरकार को कोसना शुरु किया, वैसे ही चैनल ने उसे बंद कर दिया.

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