केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थी हिंदूओं से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन आमंत्रित किया है।
ऐसे वक्त में जब पूरा देश कोरोना से जंग लड़ रहा है, वैसे में एक बार फिर से हिंदू मुस्लिम कार्ड खेलना शुरु कर दिया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन आमंत्रित किया है। इस नागरिकता आवेदन की शर्त है कि ये अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम होने चाहिए।
आजाद भारत के इतिहास में ये पहला मौका है जब सरकार धर्म के आधार पर नागरिकता आवेदन मांग रही है। यह एक प्रकार से भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर प्रहार है।
कांग्रेस सांसद एवं संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व संयुक्त सचिव शशि थरुर ने सरकार के इस फैसले पर ट्वीट करते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
थरुर ने कविता के अंदाज में कहा कि “मौत, गरीबी और अर्थव्यवस्था सारे मुद्दे खा गया. फिर हिंदू मुस्लिम आ गया, फिर हिंदू मुस्लिम आ गया”
दरअसल कोरोना की दूसरी लहर के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने जिस नाकामी का परिचय दिया है, उसके बाद से वो लगातार देश की जनता के निशाने पर हैं।
लाखों लोग कोरोना की दूसरी लहर में बदइंतजामी की भेंट चढ़ गए। जिस दौर में सरकार को कोरोना से लड़ना था,
सरकार उस मुश्किल वक्त में पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ रही थी। माना जा रहा है कि आम लोगों के गुस्से को देखते हुए सरकार अब चाल पर चाल चलने लगी है।
इसकी शुरुआत सबसे पहले रामदेव के बयान से हुई। रामदेव ने एलोपैथी को सबसे वाहियात और घटिया मेडिकल साइंस बताया और कहा कि एलोपैथ की वजह से ही लोगों की जान चली गई।
रामदेव ने देश में नई बहस की शुरुआत कर दी और यह साबित करने की कोशिश की कि मोदी सरकार की वजह से नहीं बल्कि डाॅक्टरों की वजह से लोग मर गए. अब दूसरी चाल नागरिकता आवेदन है।
बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक शरणार्थियों से नागरिकता आवेदन मांग कर सरकार ने देश में एक बार फिर से हिंदू और मुस्लिम धु्रवीकरण की शुरुआत कर दी है ताकी कोरोना से हुई मौतों से लोगों का ध्यान हट जाए और एक बार फिर से लोग हिंदू और मुस्लिम की बहस में उलझ जाए। यह भाजपा और मोदी सरकार का सबसे सटीक, अचूक और आजमाया हुआ पैंतरा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में लोगों को जमकर धर्म की अफीम चटाई गई है।