आज सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे फैसले पर मुहर लगाई है जिसपर तमाम सवाल उठ रहे हैं। साल 2012 के छावला गैंगरेप व मर्डर मामले में तीनों दोषियों को रिहा कर दिया गया।

जबकि निचली अदालत व हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। बेटियों पर बढ़ते अपराध पर ऐसे फैसले लगाम नहीं बल्कि खतरनाक मोड़ ले सकते हैं।

2012 में 19 साल की लड़की को अगवा कर गैगंरेप किया गया उसके बाद उसपर तेजाब डालकर मार दिया गया।

लड़की के आँखों में तेजाब डाल दिया था। इन तीनों ने मिलकर हैवानियत की सारें हदें पार कर दी थी।

यह घटना इतनी वीभत्स थी कि हर तरफ इसके खिलाफ आवाज उठी थी।

आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के तीनों आरोपी रवि, राहुल और विनोद को रिहा कर दिया।

जबकि दिल्ली हाईकोर्ट ने तीनों को अपहरण,हत्या, बलात्कार का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया।

इससे पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी की सजा कम कर दी थी।

इसके अलावा बिलकिस मामले में अपराधी रिहा कर दिए गए।

अब सवाल उठता है कि क्या ऐसे फैसलों से बेटियों के साथ बढते अपराधों में कमी आएगी या मामले बढ़ जाएंगे? तमाम लोग इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं।

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