अयोध्या में 1990 में कानून व्यवस्था बरकरार रखने के लिए बेकाबू कार सेवकों पर गोली चलाने के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है।

सुप्रीम कोर्ट ने मुलायम सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने में देरी हुई है, इसीलिए इसी आधार पर याचिका खारिज की जाती है।

दरअसल, 277 दिनों की देरी के बाद याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसको शीर्ष कोर्ट ने देरी करार दिया।

मामला 30 अक्टूबर 1990 का है। उस दिन अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए हजारों उपद्रवी कार सेवक वहां जमा हुए थे। जिसके बाद पुलिस ने बेकाबू भीड़ को रोकने के लिए गोलियां चलाई थीं, पुलिस की गोलियों से कई लोगों की जान चली गई थी।

तत्कालीन सरकार का ये दावा था कि उस वक़्त कार सेवक बेकाबू हो गए थे जो पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद भी काबू में नहीं आ रहे थे।

याचिका दाखिल करने वाले राणा संग्राम सिंह हैं। जिन्होंने लखनऊ की निचली अदालत से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर अंत में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन, सभी अदालतों ने मुलायम सिंह पर एफआईआर दर्ज करने की याचिका को खारिज कर दिया। यानि अदालतों ने मुलायम के 1990 के फैसले को गलत नहीं माना है।

राणा संग्राम सिंह ने 2014 में मैनपुरी में मुलायम सिंह द्वारा दिए उस बयान का हवाला दिया जिसमें मुलायम ने कारसेवकों पर गोली चलवाने वाली बात स्वीकारी थी।

लेकिन, संग्राम सिंह ने इस बयान पर लखनऊ पुलिस से मुलायम के खिलाफ मुक़दमा दर्ज करने को कहा, मगर पुलिस ने यहाँ भी मुक़दमा दर्ज करने से इनकार कर दिया था।

बता दें कि, बीजेपी मुलायम सिंह यादव पर कारसेवकों पर गोली चलवाने को लेकर उनपर निशाना साधती रही है। लेकिन, अब कोर्ट से मुलायम को राहत मिल गई है जिससे उनके विरोधियों के मुँह पर ताला लग जाएगा।

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