यूक्रेन से भारत पहुंची एक छात्रा ने अपना दर्द कैमरे के सामने बयां किया और बताया कि किस तरह से भारत सरकार ने उन्हें असहाय छोड़ दिया था.

छात्रा ने बताया है कि उन्हें तीन दिनों तक भूखे प्यासे रहकर 31 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा है.

छात्रा ने बताया कि हमें कोई हेल्प करने वाला नहीं था. जो करना है खुद करो. हम 3 दिन 3 रात तक भूखे रहकर पैदल चलते रहें वहां पर तापमान शून्य डिग्री के आसपास था.

कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. बारिश जैसा भी मौसम हो गया था. ठंड का इतना कहर था कि मेरे पास जितने कपड़े थें, हमने वो जैसे तैसे पहने, भले ही वो टाइट हो रहे हो, क्योंकि हमें ठंड से बचना था.

छात्रा ने कहा था कि मैं और मेरी बहन दोनों ने खुद से ही कैब बुक किया और केन्या बॉर्डर तक पहुंचे. वहां पर यूक्रेन प्रशासन सिर्फ यूक्रेन के लोगों को जाने नहीं रहे थें, हमें नहीं.

हमें बहुत देर तक वहां पर रोक कर रखा गया. न्यूज 24 की रिपोर्टर पल्लवी झा के साथ बातचीत में इस छात्रा ने अपनी आपबीती सुनाई.

हमारे देश का सिस्टम इस तरह से ध्वस्त हो चुका है कि सच्चाई का दम घोंटा जा चुका है.

सरकार से लेकर मीडिया तक बस झूठ की दीवार पर टिकी हुई है, ऐसा महसूस हो रहा है. एक तरफ तो वो दिखाया और सुनाया जा रहा है, जो सरकार और मीडिया हमें सुनाना और दिखाना चाहती है और दूसरी ओर इस तरह के वीडियोज हैं, जो हकीकत से हमें रुबरु करा रहे हैं.

यूक्रेन मसले पर केंद्र की मोदी सरकार की जैसी लापरवाही नजर आई, वो कोई नई बात नहीं है.

कोरोना की पहली, दूसरी और तीसरी लहर के दौरान भी सरकार की गतिविधियां संदिग्ध ही नजर आईं. कभी पश्चिम बंगाल चुनाव, कभी नमस्ते ट्रंप तो अब यूपी में प्रचार करती हुई पूरी सरकार नजर आ रही है.

सरकार सिर्फ गोदी मीडिया और आईटी सेल के जरिए अपनी छवि बचाती हुई नजर आती है, अन्यथा हालात तो हर तरफ से बदतर हो चुके हैं.

इंसानियत तो तब दम तोड़ गई जब एक भारतीय छात्र नवीन यूक्रेन में गोलीबारी की चपेट में आ गया और उसकी मौत हो गई.

मौत के बाद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री और मणिपुर के मुख्यमंत्री छप्पन भोग की दावत की तस्वीरें सोशल मीडिया पर नजर आने लगी.

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