उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया है। इसके साथ ही बीजेपी के तमाम नेताओं के वो सारे दावे ध्वस्त हो चुके हैं कि उत्तराखंड में भाजपा के अंदर सबकुछ ठीक है।

पूर्ण बहुमत की सरकार में, 4 साल भी पूरा करने के पहले अगर एक मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा है तो न सिर्फ उसके कार्यकाल पर सवाल उठेगा बल्कि पार्टी के अंदर चल रही आपसी राजनीति पर भी अटकलबाजी होंगी।

हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि उन्हें इतना बड़ा मौका मिला, इसके लिए बीजेपी के आभारी हैं और उन्हें इस्तीफा देने में कोई आपत्ति नहीं है।

वैसे सभी को पता है असमय दिए जा रहे इस्तीफे से कोई राजनेता कितना खुश हो सकता है। मगर त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बनावटी मुस्कान वाले भाव को समझा जा सकता है।

मगर ये समझना मुश्किल है कि देश का मीडिया इसपर कोई भी राजनैतिक अटकलबाजी क्यों नहीं कर रहा है ?

ऐसा लग रहा है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के साथ साथ टीवी चैनलों के तमाम संपादकों को भी आदेश ही आया करता है कि पब्लिक में कितना बोलना है।

क्योंकि यही मीडिया है जो बिहार के उप मुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव की पत्नी की कहानियों पर घंटों एपिसोड चलाता है, इसे बिहार की राजनीतिके बड़ा उलटफेर बताता है और इधर एक राज्य की सत्ता में इतना बड़ा परिवर्तन हुआ है मगर भाजपा की आपसी टूट पर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है।

वैसे मीडिया मैनेजमेंट मात्र से राजनैतिक दबाव खत्म नहीं हो जाते हैं, इस बात को बीजेपी की न सिर्फ उत्तराखंड यूनिट समझ रही होगी बल्कि हरियाणा सरकार भी समझ रही है।

क्योंकि कल उसकी भी अग्नि परीक्षा है, जब अविश्वास प्रस्ताव को विधानसभा में पेश किया जाएगा। कहीं ऐसा ना हो कि किसान आंदोलन के चलते मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भी इस्तीफा देना पड़े।

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