रक्षा बंधन का कॉन्सेप्ट

फिल्म, टीवी सीरियल, विज्ञापन, इतिहास और वर्तमान सब ये घोषित कर चुके हैं कि रक्षाबंधन भाई-बहन का त्योहार है। इसे लेकर तमाम कहानियां प्रचलित हैं मगर सबसे प्रचलित कहानी है हुमायूं और कर्णावती की।
इस कहानी के मुताबिक, चितौड़ की रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी और मदद मांगी। हुमायूं ने बहादुरशाह से कर्णावती और उसके राज्य की रक्षा की।

अब इस कहानी को हमारे समाज ने ग़लत तरह से समझ लिया और बहन की रक्षा को अपनी जिम्मेदारी समझ ली। वक्त के साथ इस स्वघोषित जिम्मेदारी ने ऑनर किलिंग को प्रमोट किया। जबकि कहानी में साफ-साफ बताया गया है कि रानी कर्णावती ने मदद मांगी थी तब हुमायूं ने मदद की थी।

भारत शायद दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क है जहां बहन की रक्षा को लेकर एक त्योहार मनाया जाता है। बावजूद इसके भारत महिलाओं के लिए विश्व का सबसे ख़तरनाक और असुरक्षित देश। ये फैक्ट गल्प नहीं है बल्कि थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वे पर आधारित है। इस सर्वे में 193 देशों को शामिल किया गया था और भारत इस सर्वे के परिणाम में प्रथम स्थान पर था। युद्धग्रस्त अफगानिस्तान, सीरिया, सोमालिया और सउदी अरब की स्थिति भी भारत से अच्छी थी।

अब इस बात को जरा भारत सरकार के आंकड़ों से समझिए, साल 2018 में जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में हर रोज़ औसतन 90 से अधिक रेप के मामले दर्ज किए जाते हैं। विशेषज्ञ न दर्ज होने वाले मामलों की संख्या दर्ज होने वाले मामलों से अधिक बताते हैं। लेकिन अगर दर्ज मामलों का ही हिसाब लगाया जाए तो भारत में हर घंटे करीब 4 रेप के मामले दर्ज हो रहे हैं।

क्या ये फैक्ट और आंकड़े रक्षाबंधन के कॉन्सेप्ट को खोखला साबित करने के लिए काफी नहीं है? क्या ये भारतीय समाज के ढोंग का पर्दा उठाने के लिए काफी नहीं है? जाहिर है ये लॉ एंड आर्डर का मामला भी है लेकिन समाज द्वारा जो नैतिकता का ढ़ोंग रचा गया है उसपर भी बात क्यों न हो?

तो अब क्या करना चाहिए ?

सबसे पहले ‘रक्षाबंधन’ मानाने के कारण को चेंज करना चाहिए क्योंकि बहनों की रक्षा करने का कॉन्सेप्ट Male Dominant Society के सिंबॉल की तरह है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि महिलाओं के सुरक्षा और सम्मान के लिए खड़े होना छोड़ देना चाहिए। बल्कि मेरे कहने का मतलब है कि बहनों का बॉडीगार्ड बनना छोड़ना चाहिए। सुरक्षा के नाम पर स्वतंत्रता का हनन करना छोड़ना चाहिए।

ये कहानी गढ़ी गयी है कि बहन अपनी रक्षा के लिए भाई को राखी बंधती है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि बहन कमजोर है और उसे भाई के सहारे की जरुरत है।

लेकिन ऐसा नहीं है, बहन अपनी सुरक्षा के लिए काफी है, उसे भाई के रहम-ओ-करम की जरूरत नहीं है। और जरा ये बताइये बहनों को किससे खतरा है? किससे सुरक्षा की जरूरत है? आप खुद सोच के देखिए किससे खतरा है बहनों को?

जाहिर है किसी के भाई से ही खतरा है बहनों को। वो भाई जो राखी बंधवाकर अपनी बहन को तो सुरक्षा देने का वादा करता है लेकिन दूसरों की बहन को देखते ही टूट पड़ता है।

तो भाइयों को अब राखी के बदले अपनी बहन को सुरक्षा की जगह स्वतंत्रता देने का वादा करना चाहिए वो भी बिना किसी शर्त के। राखी को ‘सुरक्षा के ठेकेदार’ का नहीं ‘प्यार’ का त्यौहार बनाइए।

( लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका की निज़ी राय पर आधारित है।)

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