अवंतिका तिवारी

महामारी और पितृसत्ता के बीच पिस रही हैं भारतीय महिलाएं
दुनिया भर में लगभग 90 देशों के 4 बिलियन लोग लॉकडाउन में जी रहे हैं. इस लॉकडाउन से कोरोना महामारी का कुछ हद तक नियंत्रण तो हो रहा है, पर साथ ही एक छाया महामारी भी बढ़ती जा रही है. वो है- महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा. संयुक्त राष्ट्र महिला के कार्यकारी निदेशक, फ़ुमज़िले मामल्बो-न्गुका और भारतीय राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन, रेखा शर्मा ने अपने बयानों में इस बात की पुष्टि की है.

भारत के राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ो के मुताबिक लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से घरेलू हिंसा के कुल 257 केस दर्ज किये गए. रेखा शर्मा का मानना है कि असली आंकड़े और भी ज्यादा होंगे लेकिन दोषियों की 24 घंटे घर पर मौजूद रहने के कारण महिलाएं शिकायत करने से डरती हैं. कई महिलाएं शिकायत करने से इसलिए भी डरती हैं कि कहीं पुलिस उनके पति को उठा ना ले जाए. पहले महिलाओं के पास घर छोड़ मायके जाने का विकल्प होता था. पर लॉकडाउन के बाद ये भी संभव नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र महिला के कार्यकारी निदेशक, फ़ुमज़िले ने अपने बयान में इस बढ़ती हिंसा के पीछे मानसिक तनाव को कारण माना है. उनका मानना है कि लॉकडाउन लोगों के लिए मानसिक रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है. ये दौर सुरक्षा, स्वास्थ्य और धन की चिंता से उत्पन्न तनाव को बढ़ावा दे रहा है. लोगों की हर भावना अपनी पराकाष्ठा पर आसानी से पहुंच रही है. यही कारण है कि घर बैठा पुरूष गुस्से से या परेशान होकर हिंसा पर आमादा है. इसलिए जिन महिलाओं के घरों में पुरूष हिंसक प्रवृत्ति के हैं, उन पर खतरा सबसे ज्यादा है।

लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही सोशल मीडिया में महिलाओं की चुनौतियों की बात तेज़ी पकड़ रही थी. लोगों का मानना है कि जिस लॉकडाउन वाले जीवन ने सभी की हालत पस्त कर रखी है, दरअसल बिल्कुल वैसा ही लॉकडाउन भारतीय मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग की महिलाएं हमेशा से झेलती आ रही हैं. महिलाओं को घर के चूल्हा – चौका में उलझा कर सालों से हमारा समाज उनका शोषण करता आ रहा है।

ज़रा सोचिए जिस वक्त हम आप घरों में बैठ कर अपने फोन पर कोरोना के खतरे के बारे में पढ़ रहे हैं, उसी समय भारत की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा किसी तरह खुद को हिंसा से बचा रहा है. सब कुछ होकर भी हम एक इंसान के रूप में हमेशा विफल हो जाते हैं. समाज को दोष देते हैं. लेकिन उस महिला के बारे में सोचिए, महामारी से बचने के लिए वो घर पर बैठे भी तो कैसे. हर पल उसके मन में महिला होने की वजह से हिंसा का भय बना रहता है।

कोरोना महामारी के अस्तित्व के पहले से महिलाओं के प्रति हिंसा हमारे समाज की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है. लेकिन जब लॉकडाउन के अलावा हमारे पास और कोई चारा नहीं बचा है तब भी भुगतने वाली महिलाएं ही हैं. एक समाज के रूप में हम किसान, मजदूर, गरीब, पिछड़ों के लिए तो फिर भी आगे आ कर सहायता कर रहे हैं. लेकिन महिलाओं की सहायता ऐसी परिस्थितियों में सबसे मुश्किल काम है.

(अवंतिका तिवारी IIMC दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता की छात्रा हैं)

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