मोदी सरकार ने 2014 के चुनाव में देश में रोज़गार पैदा करने के बड़े-बड़े वादे किए थे। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी लागू करते समय उसको काला धन खत्म करने की ओर एक बड़ा कदम बताया था। लेकिन अब ये दोनों दावे झूठे नज़र आ रहे हैं।

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेण्टर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट ने 16 अप्रैल को बेरोज़गारी के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ जारी किया।

इस रिपोर्ट के मुताबिक,नवंबर 2016 से अब तक 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं, यानी नोटबंदी के बाद एक झटके में 50 लाख लोग बेरोजगार हो गए।

हालांकि रिपोर्ट में लिखा ‘नौकरियों के खत्म होने और नोटबंदी के समय के साथ मेल खाता है। लेकिन डाटा के आधार पर कोई ‘कैजुअल लिंक’ स्थापित नहीं किया जा सकता’ रिपोर्ट में 2018 में बेरोज़गारी दर को 6 प्रतिशत बताया गया है, जो 2011 की तुलना में दोगुना हो गया है।

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज़्यादा बेरोजगार हुई हैं। शहरी महिलाओं में जिन्होनें स्नातक किया हुआ है, उनमें से केवल 10 प्रतिशत ही काम करती हैं। हालांकि स्नातक पास शहरी महिलाएं 34 प्रतिशत तो बेरोज़गार हैं। इन महिलाओं में से भी 20 से 24 वर्ष की महिलाएं ज़्यादा बेरोजगार हैं।

अगर ग्रामीण महिलाओं में देखा जाए तो जिन महिलाओं ने स्नातक किया है उनमें से केवल 3.2 प्रतिशत ही काम करती हैं। हालांकि स्नातक ग्रामीण महिलाएं 24 प्रतिशत बेरोजगार हैं। वहीं दूसरी ओर जो ग्रामीण पुरुष स्नातक हैं उनमें से 20 प्रतिशत बेरोजगार हैं। यानी की ग्रामीण महिलाएं ग्रामीण पुरूषों के मुकाबले ज़्यादा बेरोजगार हैं।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि CMIE और पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक युवा और शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोज़गारी दर ज़्यादा पाई गयी है। यानी कि केवल अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट ही नहीं, बल्कि बाकी रिपोर्ट्स से भी ये सामने आया है कि महिलाओं पर बेरोज़गारी की मार ज़्यादा पड़ती है।

ये सोचने वाली बात है कि महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले ना तो रोज़गार मिलता है और ना ही उसका सही भुगतान. इसलिए महिलाएं गरीबों में भी सबसे गरीब हैं।

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