आज महान वामपंथी विचारक लेनिन की 149वीं जयंती है। लेनिन का पूरा नाम ‘व्लादिमीर इलिच उल्यानोव’ था। 22 अप्रैल 1870 को लेनिन का जन्म रूस के वोल्गा नदी के किनारे बसे सिम्ब्रिस्क शहर में हुआ था।

रूस के इतिहास और विश्व की राजनीति में लेनिन का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। दुनिया में पहली बार लेनिन ने ही कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था की स्थापना की थी। मार्क्सवादी विचार को आधार बनाकर क्रांति के रास्ते सत्ता पाने का तरीका लेनिन ने ही दुनिया को दिखाया।

मार्क्सवादी विचारधारा को जमीन पर उतारकर लेनिन ने 1917 से 1924 तक पहले रूस और फिर सोवियत संघ की सत्ता संभाली। भारत में अंतिम बार लेनिन तब चर्चा में आए थे जब त्रिपुरा के दक्षिणपंथी गुंडों उनकी मूर्ति तोड़ दी थी।

दरअसल मार्च 2018 में भाजपा ने पहली बार त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की। वाम दलों का बरसों पुराना गढ़ बीजेपी ने फतह किया। लेकिन इस जीत का नशा बीजेपी समर्थकों पर ऐसा चढ़ की उन्होंने त्रिपुरा के बेलोनिया स्थापित लेनिन की मूर्ति को बुलडोजर से गिरवा दिया।

राज्य में सत्ता पाते ही लेनिन की मूर्ति को गिरवा देना लेनिन के विचारों से बीजेपी के डर को दिखाता है। और लेनिन से बीजेपी का डरना वाजिब भी। क्योंकि पूंजीपतियों की गोद में बैठकर राजनीति करने वाली बीजेपी को पता है कि लेनिन-मार्क्स की विचारधारा ही दुनिया भर में पूंजीवाद का विकल्प है।

लेकिन अफ़सोस लेनिन की एक मूर्ति तोड़कर आप उनके विचारों खत्म नहीं कर सकते। समाजवाद और धर्म के विषय में लेनिन ने जो लिखा है उसे बीजेपी के डर का कारण मालूम पड़ता है। पढिए…

“धर्म को एक व्यक्तिगत मामला घोषित कर दिया जाना चाहिए। समाजवादी अक्सर धर्म के प्रति अपने दृष्टिकोण को इन्हीं शब्दों में व्यक्त करते हैं। लेकिन किसी भी प्रकार की ग़लतफहमी न हो, इसलिए इन शब्दों के अर्थ की बिल्कुल ठीक व्याख्या होनी चाहिए।

हम माँग करते हैं कि जहाँ तक राज्य का सम्बन्ध है, धर्म को व्यक्तिगत मामला मानना चाहिए। लेकिन जहाँ तक हमारी पार्टी का सवाल है, हम किसी भी प्रकार धर्म को व्यक्तिगत मामला नहीं मानते।

धर्म से राज्य का कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए और धार्मिक सोसायटियों का सरकार की सत्ता से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए।

प्रत्येक व्यक्ति को यह पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए कि वह जिसे चाहे उस धर्म को माने, या चाहे तो कोई भी धर्म न माने, अर्थात नास्तिक हो, जो नियमतः हर समाजवादी समाज होता है।

नागरिकों में धार्मिक विश्वास के आधार पर भेदभाव करना पूर्णतः असहनीय है। आधिकारिक काग़ज़ात में किसी नागरिक के धर्म का उल्लेख भी, निस्सन्देह, समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

स्थापित चर्च (धार्मिक स्थल) को न तो कोई सहायता मिलनी चाहिए और न पादरियों को अथवा धार्मिक सोसायटियों को राज्य की ओर से किसी प्रकार की रियायत देनी चाहिए।”

अब लेनिन के इन विचारों की जब भी चर्चा होती है तो बीजेपी की तरह ही तमाम दक्षिणपंथी दल स्वदेशी कार्ड खेल देते हैं। त्रिपुरा में लेेनिन की मूर्ति गिराए जाने के बाद भी बीजेपी प्रवक्ताओं का तर्क था कि किसी विदेशी की मूर्ति गिराए जाने पर विवाद क्यों हो रहा है?

जाहिर है ये तर्क नहीं कुतर्क है और वो भी बहुत सतही। विज्ञान और विचार देश की सीमा से परे होते हैं। विदेशी इंंजीनियरों ने ही संसद भवन और राष्ट्रपति भवन बनाया तो क्या उन्हें तोड़ देना चाहिए ? न्यूटन और डार्विन भी नागपुर में नहीं पैदा हुए थे तो क्या न्यूटन और डार्विन की थ्योरी को नकार देना चाहिए? विदेशी वैज्ञानिकों के आविष्कारों को जला देना चाहिए?

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