नागरिक संशोधन विधेयक (CAB) को लेकर बीजेपी के सहयोगी दल जनता दल युनाइटेड (JDU) में फूट नज़र आने लगी है। जेडीयू द्वारा लोकसभा में बिल का समर्थन किए जाने से पार्टी के कई नेता नाराज़ हो गए हैं। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के बाद वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने भी पार्टी के रुख का विरोध किया है।
पवन वर्मा ने नीतीश कुमार से इस बिल को समर्थन देने पर दोबारा विचार करने की अपील की है। पवन वर्मा ने ट्विटर के ज़रिए कहा, “मैं नीतीश कुमार से अपील करता हूं कि वह राज्यसभा में इस बिल को समर्थन देने पर दोबारा विचार करें। ये बिल असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण और देश की एकता व सौहार्द के खिलाफ है। साथ ही जेडीयू के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के भी खिलाफ है। आज गांधीजी होते तो वह भी इसका कड़ा विरोध करते”।
I urge Shri Nitish Kumar to reconsider support to the #CAB in the Rajya Sabha. The Bill is unconstitutional, discriminatory, and against the unity and harmony of the country, apart from being against the secular principles of the JDU. Gandhiji would have strongly disapproved it.
— Pavan K. Varma (@PavanK_Varma) December 10, 2019
इससे पहले जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने भी पार्टी के स्टैंड पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी। उन्होंने ट्वीट कर लिखा था, “जदयू के नागरिकता संशोधन विधेयक को समर्थन देने से निराश हुआ। यह विधेयक नागरिकता के अधिकार से धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। यह पार्टी के संविधान से मेल नहीं खाता जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द पहले पन्ने पर तीन बार आता है। पार्टी का नेतृत्व गांधी के सिद्धांतों को मानने वाला है”।
सिटिज़नशिप बिल पर JDU के समर्थन से नाराज़ प्रशांत किशोर, कहा- बिल धर्म के आधार पर भेदभाव करता है
ग़ौरतलब है कि लोकसभा में बीजेपी सांसदों की संख्या को देखते हुए ये तय माना जा रहा था कि यहां बिल के पास होने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन राज्यभा में इस बिल को पास कराने के लिए बीजेपी को दूसरे दलों के समर्थन की भी ज़रूरत पड़ेगी। जेडीयू और शिवसेना ने लोकसभा में तो इसका समर्थन कर दिया है। लेकिन पार्टी नेताओं के इस विरोध के बाद राज्यसभा में तस्वीर बदल भी सकती है।
क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (CAB)?
नागरिक संशोधन विधेयक 2019 के तहत सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव का प्रस्ताव है। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों (जैसे हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों) को आसानी से भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।
अभी भारत की नागरिकता के लिए यहां कम से कम 11 सालों तक रहना जरूरी है। लेकिन इस बिल के पास होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता लेने के लिए 6 साल तक ही भारत में रहना होगा। लेकिन इस बिल में मुसलमानों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।