पिछले दिनों घटित दो घटनाओं ने देश का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। इनमें पहला था यूपी के उन्नाव में एक 18 वर्षीय सब्जी युवक की पुलिस पिटाई से हिरासत में मौत और दूसरा छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में एक कलेक्टर द्वारा एक युवक को थप्पड़ मारे जाने की घटना।

छत्तीसगढ़ में जैसे ही एक कलेक्टर ने युवक को थप्पड़ मार दिया, छत्तीसगढ़ की सरकार और वहां के सीएम भूपेश बघेल को लगातार ट्रोल करने की शुरुआत हो गई,

सभी मीडियाकर्मियों का माइक बाहर आ गया और सीएम पर सवालों की बौछार कर दी गई। ये महज थप्पड़ मारने का मामला था।

वहीं यूपी में तो पुलिस ने एक युवक की हत्या ही कर दी। इस पर कितने मीडियाकर्मियों ने सीएम योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा !

वरिष्ठ पत्रकार रोहिणी सिंह ने इस मामले पर मीडियाकर्मियों के दोहरे रवैये पर सवालिया निशान दागते हुए ट्वीट किया है कि “एक थप्पड़ पर छत्तीसगढ़ के सीएम से एक दिन में लाखों सवाल पूछ लिए गए. सवाल पूछने भी जाहिए, ये लोकतंत्र है।

मगर यूपी के उन्नाव में लाॅकडाउन का उल्लंघन करने पर पुलिस की बेरहम पिटाई से एक 18 वर्षीय बच्चे ने दम तोड़ दिया ! इस मुद्दे पर कितने पत्रकारों ने अब तक सीएम योगी आदित्यनाथ से सवाल पूछा?

हमारे देश में मीडिया इन दिनों बेहद विचित्र दौर से गुजर रहा है। इन्हें किसी भी घटना के लिए भाजपा की सरकारें तो कसूरवार नजर ही नहीं आती।

किसी भी मुद्दे पर विपक्ष से सवाल पूछने की नई परंपरा विकसित कर दी गई है, वहीं कहीं कोई गैर भाजपा शासित प्रदेश में कोई घटना घटती है तो सरकार जिम्मेवार हो जाती है पर भाजपा शासित प्रदेश में कोई भी घटना हो जाए तो कोई सवाल पूछता हुआ नजर नहीं आता।

मीडिया की आवाज दब जाती है। लोकतंत्र के थे स्तंभ का इस प्रकार से पतन पहली बार देखा जा रहा है।

प्रिंट और इलेक्ट्राॅनिक मीडिया का हाल तो यह है कि भाजपा शासित प्रदेशों से जुड़े घटनाओं को दबाने की भरपूर कोशिश की जाती है।

भला हो, डिजिटल मीडिया का कि वो अपने स्तर से इन मुद्दों को उठाते हैं और देश की नजर उन घटनाओं पर चली जाती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तंभ के रवैये से पूरा देश निराश है।

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