गुजरात की बीजेपी सरकार की वादाख़िलाफ़ी से परेशान होकर ऊना के पीड़ित दलित परिवारों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की मांग की है।

इन लोगों का कहना है कि बीजेपी की वादाख़िलाफी की वजह से वो घुट-घुट कर जी रहे हैं और आने वाले वक्त में भुखमरी का शिकार हो सकते हैं, इसलिए ऐसी ज़िंदगी नहीं जीना चाहते।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, राष्ट्रपति को यह पत्र पीड़ित दलित परिवारों की तरफ से वशराम सर्वैया ने लिखा है। वशराम उन 8 दलितों में शामिल थे, जिन्हें 2 साल पहले कथित गोरक्षकों ने निशाना बनाया था।

वशराम ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा कि गुजरात की बीजेपी सरकार ने उन लोगों से किए किसी वादे को पूरा नहीं किया है। जिसके चलते उन्हें गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

वशराम ने पत्र में लिखा, “उन्होंने (आनंदीबेन पटेल) आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार हर पीड़ित को 5 एकड़ जमीन देगी।

पीड़ितों को उनकी योग्यता के मुताबिक सरकारी नौकरियां मिलेंगी और मोटा समधियाला को विकसित गांव बनाया जाएगा। घटना के गुजरे दो साल 4 महीने हो चुके हैं लेकिन सरकार ने कोई वादा पूरा नहीं किया और न ही इस दिशा में कोई प्रयास किया।”

वशराम ने पत्र में लिखा है कि हमले की वजह से उन्हें चमड़े का पुश्तैनी धंधा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसकी वजह से उनके पास रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है। उन्होंने आशंका जताई कि भविष्य में वे भुखमरी का भी शिकार हो सकते हैं।

वशराम का कहना है कि उन्होंने कई बार गुजरात सरकार से इस बारे में लिखित और मौखिक तौर पर शिकायत की। लेकिन उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

वशराम ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि वह और बाकी पीड़ित इस बात से आहत हैं कि सरकार ने हमले के विरोध में हुए प्रदर्शनों के मामले में दलितों पर दर्ज किए गए 74 केस वापस नहीं लिए। उन्होंने पत्र में यह भी बताया कि उनका एक आदमी 7 दिसंबर से दिल्ली में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठेगा।

बता दें कि 11 जुलाई, 2016  को कथित गौरक्षों ने गौहत्या का आरोप लगाते हुए वशराम, उनके भाई रमेश, उनके पिता और मां सहित 8 लोगों पर हमला बोल दिया था।

जबकि बाद में यह बात साबित हो गई थी कि इन लोगों ने गौहत्या नहीं की थी, बल्कि यह लोग तो घटना के वक्त पशुओं के शव से चमड़ा उतार रहे थे।

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