देश की सरकारी कंपनियों को कॉर्पोरेट के हाथों में सौंप चुकी मोदी सरकार अब पर्यावरण संबंधी बड़ा फैसला लेने जा रही है। सरकार एनवायरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट (EIA) ड्राफ्ट 2020 के ज़रिए पर्यावरण का भविष्य अंधेरे में ढकेलने जा रही है। इसी के साथ-साथ आम जनता के अधिकारों को भी छीनने जा रही है।
दरअसल, मोदी सरकार ने EIA ड्राफ्ट 2020 का नोटिफिकेशन जारी किया था। जनता से इस ड्राफ्ट पर आज, यानी कि 11 अगस्त, तक सुझाव भी मांगे हैं। नोटिफिकेशन में जारी दस्तावेजों से पता चलता है कि इसे उद्योगपतियों के फायदे के लिए बनाया गया है।
एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट (EPA) के अंतर्गत आने वाला EIA वही ठप्पा है जिसके आधार पर किसी भी प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जाती है। इस क्लीयरेंस को पाने के बाद ही फैक्ट्री और खदानों के प्रोजेक्ट को कागज़ से ज़मीन पर उतारा जा सकता है। लेकिन नए नियम के मुताबिक़ कंपनियां अपने प्रोजेक्ट को पहले ही ज़मीन पर उतार सकती हैं, क्लीयरेंस बाद में लिया जा सकता है। इसे पोस्ट-फैक्टो अप्ररोवल कहते हैं। मतलब, जिस प्रोजेक्ट से आम जनता और पर्यावरण खतरे में पड़ सकता है उसको रोकने वाला कोई नहीं है।
इसके साथ ही किसी प्रोजेक्ट से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है ये एसेसमेंट करने का अधिकार भी उसी कंपनी को है, जनता को नहीं। यानी जो उद्योगपति पर्यावरण का नुकसान करेगा वही बताएगा कि वह कितना नुकसान कर रहा है।
जब कभी फैक्टरियां बिना पर्यावरण और जनता की सेहत का ध्यान रखे डाली जाती हैं, तो भोपाल और विज़ाग गैस ट्रेजेडी जैसी दुर्घटनाएं घट जाती हैं। कईं लोगों की ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है।
पुराने नियम के मुताबिक प्रोजेक्ट जहां बनेगा, उस जगह की जनता से भी फ़ीडबैक लेना जरूरी होता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि यही लोग प्रोजेक्ट पर सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले होते हैं। इस फ़ीडबैक को देने की अवधि 30 दिन की थी। लेकिन इसे अब घटाकर 20 दिन तक कर दिया गया है।
इसी के साथ-साथ सरकार किसी भी प्रोजेक्ट को ‘स्ट्रेटेजिक’ बता सकती है। ऐसे प्रोजेक्ट के लिए EIA लेने की ज़रूरत ही नहीं होगी। इसके जरिए आम जनता को नहीं, कॉर्पोरेट घरानों को फ़ायदा पहुंचेगा। उनके प्रोजेक्ट को ‘स्ट्रेटेजिक’ बताकर शील्ड किया जा सकता है।
पर्यावरण की पिच पर मोदी सरकार फेल रही है। ‘द गार्डियन’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 नई कोयला खदानें बनाई जानी है जिसके लिए जंगलों का सफाया किया जाएगा। 2019 में आई रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के 5 साल के राज में विकास के नाम पर 1 करोड़ से ज़्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं।
सालों से आर्थिक विकास के नाम पर पर्यावरण और आदिवासी जीवन को तहस-नहस किया जाता आ रहा है। आगे भी ऐसा ही होता दिख रहा है।