महीनों से चल रहे किसान आंदोलन को ख़त्म करने के लिए मोदी सरकार किसानों के साथ समझौता करने को तैयार नहीं है। लेकिन पंजाब के फिरोज़पुर से दो बार भाजपा विधायक रहे सुखपाल सिंह नन्नू ने आंदोलित किसानों के पक्ष में पार्टी छोड़ दी है।
सुखपाल सिंह नन्नू ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की मौत की निंदा करते हुए गुरुवार को पार्टी छोड़ दी।
इससे पहले भी वो चेतावनी दे चुके थे कि यदि किसानों का मुद्दा जल्द ही सुलझाया न गया तो वह पार्टी की सदस्य्ता से इस्तीफा दे देंगे। नन्नू राजनीती के अलावा व्यापार और किसानी भी करते हैं।
उनका कहना है कि आंदोलन में कुछ किसानों की जान चली गई, जिसके कारण उनके समर्थकों ने उन्हें 2022 विधान सभा चुनाव से पहले कोई ठोस कदम उठाने को कहा। नन्नू का आरोप है कि मौजूदा हालात के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा जिम्मेदार हैं।
नन्नू ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “पंजाब के शीर्ष नेतृत्व ने केंद्रीय आलाकमान के सामने सही तस्वीर पेश नहीं की। जब से कृषि कानून पारित हुए, मैंने उनका सबसे पहले विरोध किया।”
ये भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है। भाजपा सरकार का कहना है कि वह किसानों और उनके नेताओं से ताल-मेल बना रही है, कोई समाधान निकालने का प्रयास कर रही है।
लेकिन, खुद उन्हीं की पार्टी के दो बार विधायक रहे नेता ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। उन्हें लगता है कि इस मुद्दे को सुलझाया नहीं जा रहा, किसानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है।
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब किसी ने भाजपा पार्टी का कृषि कानूनों के कारण साथ छोड़ा हो.
इससे पहले हरियाणा से भाजपा नेता और पूर्व मुख्य संसदीय सचिव रामपाल मजरा ने कृषि कानूनों के विरोध में और किसानों के पक्ष में जनवरी में पार्टी छोड़ दी थी।
यही नहीं, उन्होनें गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में हुई हिंसा के लिए भी भाजपा को ही ज़िम्मेदार ठहराया था। भाजपा नेताओं के अलावा पार्टी के सहयोगियों ने भी कृषि कानूनों के विरोध में उसका साथ छोड़ा है।
दिसंबर, 2020 में राजस्थान एनडीए की सहयोगी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया था। आरएलपी के पास लोकसभा में एक सीट और राज्य विधानसभा में तीन सीट हैं। सितंबर, 2020 में अकाली दल ने भी भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ दिया था।