उत्तर प्रदेश के मथुरा में सोमवार को कॉन्ट्रैक्ट सफाई कर्मचारी को गिरफ्तार करने की खबर सामने आई है। माना जा रहा है कि ये गिरफ्तारी केवल इसलिए की गई क्योंकि उसके कूड़ा गाड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश मुखमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर मिली थी।
दरअसल, रविवार को सोशल मीडिया पर एक विडियो वायरल हो रही थी, जिसमे एक सफाई कर्मचारी कूड़ा गाड़ी लेकर जाता हुआ दिख रहा था और पीछे से कोई शख्स उनका वीडियो रिकॉर्ड कर रहा था।
वीडियो में कचरा गाड़ी में कुछ फोटो दिख रहे थे और आदमी सफाई कर्मी से कहने लगा “मथुरा में मुख्यमंत्री का फोटो डस्टबिन में। ये देखिए आप भाई, ये फोटो निकालो, ये किनका है? आपके सीएम का फोटो है। ये देखिए सीएम का फोटो है। पीएम नरेंद्र मोदी का फोटो भी है।”
वीडियो रिकॉर्ड करने वाले इसके बाद सफाई कर्मचारी का नाम पूछने लगे, जिसके बाद कर्मचारी ने जवाब दिया कि उन्हें यह तस्वीरें कूड़े में पड़ी मिली थीं।
बाद में राजस्थान के अलवर के रहने वाले पंकज गुप्ता नामक व्यक्ति ने इन तस्वीरों को कचरा गाड़ी से निकाला और धुलवाकर अपने साथ ले गए।
आपको बता दें कि सोमवार को इस घटना के चलते कर्मचारी को केवल गिरफ्तार ही नहीं किया गया बल्कि उसकी नौकरी भी उससे छिन ली गई।
इस खबर के सामने आने के बाद पत्रकार अजित अंजुम ने ट्वीट कर अपनी आलोचना व्यक्त की और लिखा “मुख्यमंत्री योगी मथुरा के इस गरीब सफाई कर्मचारी का इतना बड़ा कसूर नहीं था कि इसकी नौकरी ले ली जाए. संविदा पर 5 हजार की नौकरी करने वाले दुलीचंद का परिवार अब कैसे चलेगा सर ? सफाई कर्मचारियों का पैर धोने वाले नरेंद्र मोदी भी ध्यान दें”।
इसी के साथ समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने इस घटना को बीजेपी की राजशाही बताया और कहा कि देश में अघोषित इमरजेंसी लगी है और जुल्म किया जा रहा है।
यह बात किसी से छुपी नहीं रही है कि भारत में पिछले लंबे वक़्त से भाजपा सरकार की आलोचना करते या उनके खिलाफ गवाही देते लोगों को बिना किसी अपराध के गिरफ्तार कर लिया जाता है।
अब इसे सत्ता का गलत इस्तेमाल करना कहा जाए या कुछ और, ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या सच में प्रधानमंत्री की फोटो को गाड़ी में ले जाना इतनी बड़ी बात है कि एक आम नागरिक को अपनी सालों की नौकरी से हाथ धोना पड़ा?
क्या एक कर्मचारी पर बिन वजह एक अपराधी होने का टैग लगाना और उसे कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर मजबूर करना सही है?
यह घटना इस बात का सबूत है कि इस देश में भारत के लोगों से सरकार नहीं बल्कि सरकार द्वारा लोगों को अपनी उंगली पर चलाया जा रहा है, जिसे किसी भी तरह से उचित ठहराना गलत होगा। लोकतंत्र में लोक को तंत्र चलाने वालों से नीचे दिखाना शर्मनाक है।