बसपा सुप्रीमो मायावती ने देशभर में बढ़ रहे मॉब लिंचिंग के मामलों पर कानून लाने की बात की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा- मॉब लिंचिंग एक भयानक बीमारी के रूप में देश भर में उभरने के पीछे वास्तव में खासकर बीजेपी सरकारों की क़ानून का राज स्थापित नहीं करने की नीयत और नीति की ही देन है।
जिससे अब केवल दलित, आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोग ही नहीं बल्कि सर्वसमाज के लोग व पुलिस भी शिकार बन रही है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केन्द्र को गंभीर होकर मॉब लिंचिंग पर अलग से देशव्यापी कानून अबतक जरूर बना लेना चाहिये था लेकिन लोकपाल की तरह मॉब लिंचिग के मामले में भी केन्द्र उदासीन है व कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार साबित हो रही है। ऐसे मे यूपी विधि आयोग की पहल स्वागतोग्य है।
मा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केन्द्र को गम्भीर होकर माब लिन्चिग पर अलग से देशव्यापी कानून अबतक जरूर बना लेना चाहिये था लेकिन लोकपाल की तरह माब लिंचिग के मामले में भी केन्द्र उदासीन है व कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार साबित हो रही है। ऐसे मे यूपी विधि आयोग की पहल स्वागतोग्य है।
— Mayawati (@Mayawati) July 13, 2019
गौरतलब हो कि पिछले दिनों भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाओं को देखते हुए राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को सलाह दी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कानून बनाया जाये। जिसके बाद राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एएन मित्तल ने मॉब लिंचिंग पर अपनी रिपोर्ट और प्रस्तावित विधेयक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी गई है।
जस्टिस द्वारा मुख्यमंत्री को सौंपी गई 128 पन्नों वाली इस रिपोर्ट में राज्य में भीड़ तंत्र द्वारा की जाने वाले हिंसा की घटनाओं का हवाला देते हुये जोर दिया है कि हाईकोर्ट के 2018 के निर्णय को ध्यान में रखते हुये विशेष कानून बनाया जाये।
उत्तर प्रदेश में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, साल 2012 से 2019 तक ऐसी 50 घटनायें हुई जिसमें 50 लोग हिंसा का शिकार बने, इनमें से 11 लोगों की हत्या हुई जबकि 25 लोगों पर गंभीर हमले हुये हैं। इसमें गाय से जुड़े हिंसा के मामले भी शामिल हैं।
ऐसे योगी सरकार सख्त कानून बनाकर एक अपराध मुक्त प्रदेश बनाने की मुहिम जारी रखने की कोशिश में अब लिंचिंग करने वालों की तादाद चाहे कितनी बढ़ जाए मगर अपराध करने वालों को सजा ज़रूर मिलेगी।
जस्टिस मित्तल का मानना है कि भीड़ तंत्र की उन्मादी हिंसा के मामले फर्रूखाबाद, उन्नाव, कानपुर, हापुड़ और मुजफ्फरनगर में भी सामने आये हैं। उन्मादी हिंसा के मामलों में पुलिस भी निशाने पर रहती है और मित्र पुलिस को भी जनता अपना दुश्मन मानने लगती है। ऐसे माहौल में सुरक्षित कैसे रहा जा सकता है। जहां अपनी भाषा बोलने वाले भीड़ का शिकार हो जा रहें है।