गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि उसे 29 मोबाइल फोन दिए गए थे जिसमें से 5 में मैलवेयर है, हालांकि ये नहीं कहा जा सकता है कि जासूसी की गई है.

इतना ही नहीं कमेटी ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहाकि इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से कोई मदद नहीं की जा रही है, रिपोर्ट बड़ी होने की बात कहते हुए चीफ़ जस्टिस ने कहाकि इसे पढ़ने में वक्त लगेगा इसलिए अगली सुनवाई सितंबर के आखिरी हफ़्ते में होगी.

मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई रमन्ना ने कहाकि पेगासस मामले में बनी रिपोर्ट को खुफ़िया रखने की ज़रूरत नहीं है. इस मामले में पैरवी कर रहे वकील कपिल सिब्बल ने रिपोर्ट सार्वजनिक करने को लेकर आपत्ति जताई, उन्होंने कहाकि हम नहीं चाहते हैं कि कोर्ट पूरी रिपोर्ट दे क्योंकि गोपनीयता को लेकर चिंताएं हैं.

सिब्बल ने ये भी कहा कि मेरे मुवक्किलों ने अपने फोन दे दिए हैं अगर उनमें कोई मैलवेयर था तो हमें इसकी जानकारी दी जानी चाहिए.

कमेटी ने भी सिफ़ारिश की है कि रिपोर्ट का विवरण सार्वजनिक डोमेन में प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में अधिक जानकारी से नए मालवेयर बन सकते हैं. जो कि ख़तरनाक होगा.

साल 2019 में एक रिपोर्ट आई थी जिसमें दावा किया गया था कि भारत के लगभग 1400 लोगों के निजी मोबाइल या सिस्टम की जासूसी हुई थी जिसके बाद राजनीतिक भूचाल आ गया था.

जिन लोगों की जासूसी करने का आरोप था उनमें देश के कई नामी पत्रकार, विपक्ष के नेता, केंद्र सकरार के दो मंत्री, सुरक्षा एजेंसियों के कई आला अधिकारी और उद्योगपति शामिल हैं.

जिन पत्रकारों की जासूसी का आरोप था वो हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, टीवी 18. द हिंदू, द ट्रिब्यून, द वायर जैसे संस्थानों से जुड़े हैं, इनमें कुछ स्वतंत्र पत्रकारों के नाम भी शामिल हैं. इस मामले में कई पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स ने याचिका दायर कीं थी और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की थी.

जिसके बाद 27 अक्टूबर 2021 को सीजेआई एनवी रमणा, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने एक टैक्निकल कमेटी गठित की जिसने टेक्निकल मुद्दों की जांच की.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here