केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंकों को लेकर एक और बड़ा फैसला किया है। सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक के निजीकरण पर मोदी सरकार की मुहर लग गई है।

अब इन दोनों बैंकों की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने का निर्णय मोदी सरकार ने कर लिया है। अब इन दोनों बैंकों में सरकार धीरे धीरे अपनी हिस्सेदारी घटाएगी।

बताया जा रहा है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सरकार के इस फैसले पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है कि “60 साल में जो कुछ भी बनाया, सब कुछ बेच डालेंगे”

वहीं गुजरात कांग्रेस के नेता अर्जुन मोढ़वाडिया ने कहा कि वो पहले कहते थे कि सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं झुकने दूंगा.. और अब कहते हैं कि सारी सरकारी संपत्तियों को बेचकर देश को खोखला कर दूंगा। उन्होंने आगे कहा कि जिसे देश के लोगों ने रक्षक समझा था, वो अब भक्षक निकला।

मिली जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार अपने इस फैसले को अमली जामा पहनाने के लिए बैंकिंग नियमन एक्ट में बदलाव के साथ ही दूसरे कानूनों में भी संशोधन करेगी। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से भी इस मुद्दे पर आखिरी राय ली जाएगी।

नीति आयोग ने अपनी पिछली रिपोर्ट में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक के निजीकरण की सिफारिश की थी।

नीति आयोग से दो बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी का प्रस्ताव मांगा गया था, जिसका निजीकरण किया जा सके।

नीति आयोग ने इन्हीं दो बैंकों का नाम आगे बढ़ाया जिसके बाद सरकार ने इनके निजीकरण को मंजूरी दी।

बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में बैंकों की हिस्सेदारी को बेचना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि पिछले साल भी सरकार ने विनिवेश के जरिए 2.10 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य बनाया था, जो हासिल नहीं हो सका।

वहीं सोशल मीडिया पर लगातार इन दोनों बैंकों के बेचने के सरकार के निर्णय की आलोचना हो रही है।

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंकों के कर्मचारी सोशल मीडिया के अलग अलग प्लेटफॉर्म्स पर इसका विरोध कर रहे हैं।

कई कर्मचारी जहां अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की बात कर रहे हैं तो कईयों का कहना है कि बैंक यूनियनों की कमजोरी के कारण सरकार लगातार कर्मचारी विरोधी फैसले कर रही है। अब बैंक यूनियनों से इस्तीफा देना ही एकमात्र विकल्प है।

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