मोदी सरकार द्वारा किया गया एक और दावा ग़लत पाया गया है। अब पता चला है कि सरकार ने नए कृषि कानूनों को लागू करने से पहले किसीनों की सलाह नहीं ली थी।

इस बात का ख़ुलासा एनडीटीवी द्वारा दायर की गई एक आरटीआई से हुआ है। इससे पहले सरकार दावा करती आई है कि उसने कृषि कानून लाने से पहले किसानों के साथ बातचीत की थी।

दरअसल, एनडीटीवी द्वारा दायर की गई आरटीआई में कृषि मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या कानून लागू करने से पहले किसानों से सलाह ली गई थी। आरटीआई में पूछा गया था कि सरकार ने कितनी बार किसानों से सुझाव लिए थे।

आरटीआई में किसानों से ली गई सलाह और मीटिंग को लेकर विस्तृत जानकारी मांगी गई थी। जिसके जवाब में सरकार ने कहा कि उसके पास किसानों से ली गई सलाह का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

बता दें कि विपक्षी दल के नेता ये आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार ने नए कृषि कानूनों को लागू करने से पहले किसानों से कोई परामर्श नहीं किया था।

विपक्षियों के इन आरोपों के जवाब में सरकार दावा करती रही है कि उसने नए कानून लागू करने से पहले किसानों के साथ कई दौर की बैठक की है। कानून किसानों के परामर्श से ही लागू किए गए हैं।

बीते सोमवार को ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक फेसबुक लाइव कार्यक्रम में कहा था कि इन कानूनों पर देश में बहुत लंबे समय से चर्चा चल रही है। कई समितियों का गठन किया गया था, जिसके बाद देश भर में कई परामर्श आयोजित किए गए थे।

वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने महीने की शुरुआत में दावा किया था कि कृषि कानून पर हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श, प्रशिक्षण और आउटरीच कार्यक्रम किए गए थे। उन्होंने कहा था कि 1.37 लाख वेबिनार और प्रशिक्षण जून में आयोजित किए गए थे। जिसमें 92.42 लाख किसानों ने भाग लिया था।

अब आरटीआई से हुए ख़ुलासे के बाद ये तो साबित हो गया है कि सरकार किसानों से परामर्श को लेकर जो दावे कर रही थी, वो सही नहीं थे। सरकार के पास इसके कोई आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।

इस खुलासे के सामने आने के बाद सवाल उठता है कि क्या सरकार इस तरह के दावों से देश को गुमराह करने की कोशिश कर रही थी?

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