झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां सरकार दावे तो लंबे समय से कर रही है पर उन दावों की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। स्कूलों का बहुत बुरा हाल है। शिक्षा व्यवस्था टूटी हुई इमारतों के पास अपनी आखिरी सांसें गिन रही है। बच्चे ठंड में खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं।
सियासत और अफसरशाही किसी के साथ रहम नहीं करती। ये बच्चों और बड़ों में भी फर्क नहीं करती, सबसे एक तरह का अन्याय करती है। इसे खुले आसमान के नीचे पढ़ते हुए बच्चे नहीं दिखाई देते। इसे धूल में सना हुआ मिड डे मील खाते बच्चे भी नहीं दिखाई देते। इसीलिए ये सियासत और अफसरशाही स्कूल की इमारत गिरवा तो देती है पर इसे बनवाना भूल जाती है।
झारखंड में शिक्षा का बजट 10 हजार करोड़ से भी ज्यादा है और वितीय वर्ष 2019 -20 के कुल बजट का लगभग 13.5 फीसदी है। बावजूद इसके यहां स्कूल की इमारत के अभाव में बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं।
रांची से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर स्थित राजौलियातु के महादेव तोला में राज्यकृत प्राथमिक विद्यालय के बच्चे जर्जर भवन के टूटने के बाद से ही खुले आसमान में पढ़ाई कर रहे हैं। यह भवन 20 नवंबर को तोड़ दिया गया था, जिसके बाद से यहां अभी तक कुछ भी नहीं हो पाया है। ऐसे में बच्चों को वहां से गुजरने वाले जानवरों, मुसाफिरों के बीच पढ़ना पड़ता है। साथ ही स्कूल भवन नहीं होने के कारण मिड डे मील भी गंदगी के बीच परोसा जाता है।
जब ये मामला शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने चैम्बर से DSE को तुरंत तलब किया और स्कूल गए। इसके बाद उन्होंने अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई। शिक्षा मंत्री ने 10 दिन के भीतर स्कूल के भवन के निर्माण कार्य को शुरू करने का निर्देश दिया है।