बीते दिनों से ही इजराइली स्पाइवेयर पेगासस के जरिए भारत के पत्रकारों, नेताओं और अधिकारियों के फोन टैप करवाए जाने का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस मामले में मोदी सरकार विपक्षी दलों के सवालों के घेरे में आ चुकी है। संसद में मॉनसून सत्र के दौरान भी इस मुद्दे पर मोदी सरकार से सवाल किए जा रहे हैं।
शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इस बारे में मीडिया से बातचीत के दौरान कई बड़े सवाल उठाए हैं।
उन्होंने कहा है कि इस तरह की जासूसी अगर हमारे देश में की जा रही है। तो इसका कारण ढूंढना पड़ेगा। पेगासस जासूसी मामले पर अब तक जो खर्चा आया है। वो लगभग 350 करोड़ है।
300 लोगों की जासूसी करवाने के लिए खर्च किए गए यह 350 करोड़ किस के अकाउंट से गए हैं? इसका फाइनेंशियल कंट्रोलर कौन है? जिसने पेगासस को भुगतान किया है?
अगर यह सरकारी खाते से नहीं गया है। तो सरकार ने किसी को तो यह जिम्मेदारी दी होगी। यह बहुत बड़ी बात है कि पेगासस जासूसी कांड सस्ते में नहीं हुआ है।
शिवसेना नेता संजय राउत ने बताया है कि छह से सात लोगों की जासूसी करवाने का लाइसेंस ही 60 करोड़ में मिलता है।
मोदी सरकार ने 300 लोगों की जासूसी करवाई है। तो इस हिसाब से यह खर्चा अरबों में आया होगा। इसलिए यह जानना बहुत जरूरी है कि पेगासस को पैसा किसने दिया और यह पैसा कहां से आया।
इसके अलावा एक सवाल के जवाब में शिवसेना नेता ने कहा है कि अगर पेगासस के जरिए राज्यों की सरकारें गिराने की साजिश रची गई। तो लोकशाही पर ताला लगाना पड़ेगा।
इससे पहले भी शिवसेना नेता संजय राउत ने पेगासस जासूसी मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से जवाब मांगा था। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने की जरूरत है।