भले ही देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की गति धीमी पड़नी शुरू हो चुकी है। लेकिन अभी भी भारत के कई राज्यों से कोरोना संक्रमण के मामले बड़ी तादाद में सामने आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना वैक्सीन की किल्लत का मामला भी तूल पकड़ रहा है।

दरअसल कोरोना वैक्सीन की किल्लत के मामले में मोदी सरकार पर विपक्षी दलों द्वारा पहले से ही सवाल खड़े किए जा रहे थे। अब सुप्रीम कोर्ट के सवाल-जवाब के बाद यह मामला और भी गरमा गया है।

बताया जाता है कि महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना ने कोरोना वैक्सीन को लेकर मोदी सरकार के कार्यप्रणाली पर निशाना साधा है।

उन्होंने कहा है कि कोरोना वैक्सीन भले ही बाजार में आ चुकी है। लेकिन हमारे देश में टीकाकरण को लेकर दुर्दशा हो रही है।

अमेरिका और इजरायल में टीकाकरण हो चुका है। यह देश अब मास्क मुक्त हो गए हैं। लेकिन भारत में सिर्फ टीकाकरण को बड़े स्तर पर चलाने के दावे ही किए जा रहे हैं।

शिवसेना का कहना है कि भारत में जिस रफ्तार से टीकाकरण हो रहा है। उसी हिसाब से देश की पूरी जनता को टीकाकरण करते साल 2025 शुरू हो जाएगा।

शिवसेना का दावा है कि टीकाकरण में देरी से सिर्फ फार्मास्यूटिकल कंपनियों को ही लाभ मिलने वाला है। क्योंकि जब जब कोरोना संक्रमण नया स्वरूप धारण करेगा। तब तब फार्मा कंपनियां वैक्सीन लॉन्च करेंगी। इससे सिर्फ उन्हीं को ही फायदा होगा।

शिवसेना ने सवाल किया है कि 18 से 44 साल के लोगों के लिए फ्री में टीकाकरण करने पर मोदी सरकार ने 35 हजार करोड रुपए में से अब तक कितने खर्च किए हैं।

सुप्रीम कोर्ट को पीएम केयर्स फंड का हिसाब सरकार से मांग कर जनता के समक्ष रखना चाहिए। कई जगहों पर खर्च में कटौती कर उस पैसे को पीएम केयर्स फंड में डाला गया है।

सांसदों के वेतन में भी कटौती की गई। लेकिन आज भी देश में ना तो मरीजों के लिए दवाइयां है, ना ऑक्सीजन और ना ही सही टीकाकरण।

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