सुप्रीम कोर्ट ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि सीएए कानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले प्रदर्शनकारियों को जारी रिकवरी नोटिस तत्काल वापस लिया जाए और अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो हम इस नोटिस को खारिज कर देंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह कार्रवाई नियम के खिलाफ है. आपको नोटिस वापस लेनी होगी. यह नियम के खिलाफ है.
अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहें. हम आपको बता देंगे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कैसे किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि सीएए कानून के विरोध में प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ यूपी सरकार ने रिकवरी की कार्रवाई शुरु की है.
यह सुप्रीम कोर्ट की ओर से तए किए गए मानकों के खिलाफ है. यह कार्रवाई नहीं टिक सकती.
योगी सरकार की इस कार्रवाई की धज्जियां उड़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार इस मामले में खुद शिकायती है, खुद निर्णायक है और अभियोजन भी खुद ही बन गया है.
वह आरोपियों की संपत्ति की कुर्की जब्ती की कार्रवाई कर रहा है. आप इस कार्रवाई का वापस लिजिए नहीं तो फिर हम खुद इस कार्रवाई को निरस्त कर देंगे.
गौरतलब हो कि सामाजिक कार्यकर्ता परवेज आरिफ टीटू की ओर से एक अर्जी दायर कर योगी सरकार के इस रिकवरी नोटिस को चुनौती दी गई थी.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार से जवाब तलब किया था. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रिकवरी नोटिस की यह कार्रवाई पूरी तरह से सरकार की मनमानी को दर्शाता है.
ऐसे लोगों को नोटिस जारी किया गया है तो इस दुनिया में ही नहीं है और छह साल पहले उसकी मौत हुई और वह भी 94 साल की उम्र में.
इसके साथ ही दूसरे वैसे लोगों को भी प्रदर्शनकारी बताते हुए नोटिस जारी कर दिया गया है, जिनकी उम्र 90 साल से भी ज्यादा है.
सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद पेश हुई. गरिमा ने कोर्ट को बताया कि सीएए आंदोलन मामले में 106 प्राथमिकी दर्ज की गई है.
833 लोगों के खिलाफ दंगे का केस हुआ है. 274 लोगों को रिकवरी नोटिस जारी किया गया है. इनमें से 38 मामले बंद किए जा चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपको 18 फरवरी तक आखिरी मौका दे रहे हैं. आप एक कागजी कार्रवाई कर इसे वापस ले सकते हैं. अगर आप नहीं सुनेंगे तो नतीजों को भुगतने के लिए तैयार रहेंगे.
जब सुप्रीम कोर्ट यह फैसला सुना चुका है कि न्याय संबंधित कोई भी फैसला न्यायिक पदाधिकारी करेंगे तो एडीएम ने ऐसी कार्रवाई कैसे कर दी ?